नैपकिन के सोशल मार्केटिंग का विस्तार
उन्होंने कहा कि हम सब्सिडी दरों पर महिलाओं और लड़कियों के लिए सैनिटरी नैपकिन के सोशल मार्केटिंग का विस्तार भी करेंगे। पटनायक ने कहा कि यह कदम स्कूल जाने वाली किशोरियों के बीच स्वास्थ्य और स्वच्छता को बढ़ावा और महिलाओं के सशक्तीकरण की ओर अग्रसर करेगा। इससे पहले राज्य सरकार ने विशेष रूप से महिलाओं के लिए मिशन शक्ति और ममता सहित विभिन्न योजनाएं लागू की हैं। इस मौके पर स्वास्थ्य मंत्री प्रताप जेना ने कहा कि स्कूल की छात्राओं को नि:शुल्क सैनिटरी नैपकिन प्रदान करने के साथ ही सरकारी ने आशा कार्यकताओं के द्वारा ग्रामीण इलाकों में महिलाओं को सब्सिडी वाले मूल्य पर सैनिटरी नैपकिन उपलब्ध कराने का फैसला किया है।
113,000 टन का निस्तारण
भारत में महिलाओं की मासिक धर्म से जुड़ी भ्रांतिया व अंधविश्वास के साथ इस्तेमाल होने वाले सैनिटरी पैड का सुरक्षित तरीके निपटारा होना बड़ी चुनौती बन चुकी है। भारत सरकार जहां सभी महिलाओं व लड़कियों को, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में, सैनिटरी नैपकिन उपलब्ध कराना सुनिश्चित कर रही है, वहीं विशेषज्ञों ने सैनिटरी पैड के निस्तारण के मुद्दे पर खास ध्यान दिया, जो हर साल करीब 113,000 टन निकलता है। शायद इस समस्या को महसूस करने के बाद नरेंद्र मोदी की सरकार पिछले साल नए ठोस अपशिष्ट प्रबंधन (एसडब्लयूएम) नियम को ले आई, लेकिन यह पर्याप्त नहीं है। अमरीका के उत्तरी कैरोलिना में स्थित गैर-लाभकारी संगठन आरटीआई इंटरनेशनल के वरिष्ठ निदेशक माइल्स एलेज ने कहा, “कुछ भारतीय राज्य और शहरों ने ठोस कचरा निस्तारण या प्रबंधन पर ध्यान दिया है और विद्यालयों तथा संस्थानों में इस तरह के कचरा निस्तारण के लिए भट्ठियां लगाई हैं, लेकिन ऐसा बड़े पैमाने पर नहीं है।