गोरों को क्या पता…
आपको यह जानकर भी आश्चर्य होगा कि दक्षिण अफ्रीका में एक रात एक गोरे ने फर्स्ट क्लास रेल के डिब्बे से महात्मा गांधी का सामान प्लेटफार्म पर फेंक दिया था। तो उन्होंने आंदोलन छेड़ दी और उसमें उन्हें सफलता भी मिली थी। इस बात का जिक्र अरूप चटर्जी की पुस्तक द परवेयर्स ऑफ डेस्टिनी: अ कलचरल बायॉग्राफी ऑफ इंडियन रेलवेज में भी है। चटर्जी ने अपनी पुस्तक में गांधी से जुड़े कई कहानियों का भी जिक्र किया है।
आपको यह जानकर भी आश्चर्य होगा कि दक्षिण अफ्रीका में एक रात एक गोरे ने फर्स्ट क्लास रेल के डिब्बे से महात्मा गांधी का सामान प्लेटफार्म पर फेंक दिया था। तो उन्होंने आंदोलन छेड़ दी और उसमें उन्हें सफलता भी मिली थी। इस बात का जिक्र अरूप चटर्जी की पुस्तक द परवेयर्स ऑफ डेस्टिनी: अ कलचरल बायॉग्राफी ऑफ इंडियन रेलवेज में भी है। चटर्जी ने अपनी पुस्तक में गांधी से जुड़े कई कहानियों का भी जिक्र किया है।
गांधी को ढूंढ नहीं पाए लोग
अरूप चटर्जी की पुस्तक में इस बात का भी जिक्र है कि अप्रैल, 1915 में जब गांधी और कस्तूरबा हरिद्वार से मद्रास रेल से पहुंचे तो स्टेशन पर उनके स्वागत में आए लोग उन्हें ढ़ूंढ़ ही नहीं पाए। ऐसा इसलिए कि गांधी ने कभी भी भारतीय रेल के फर्स्ट क्लास में सफर नहीं किया। वो हमेशा जनरल बोगी में ही सफर करते थे। लोगों को गांधी तब मिले जब एक ट्रेन गार्ड ने उन्हें बताया कि गांधी तीसरे दर्जे में ट्रेन के सबसे आखिरी डिब्बे में हैं। वो कभी फर्स्ट क्लास में सफर नहीं करते।
अरूप चटर्जी की पुस्तक में इस बात का भी जिक्र है कि अप्रैल, 1915 में जब गांधी और कस्तूरबा हरिद्वार से मद्रास रेल से पहुंचे तो स्टेशन पर उनके स्वागत में आए लोग उन्हें ढ़ूंढ़ ही नहीं पाए। ऐसा इसलिए कि गांधी ने कभी भी भारतीय रेल के फर्स्ट क्लास में सफर नहीं किया। वो हमेशा जनरल बोगी में ही सफर करते थे। लोगों को गांधी तब मिले जब एक ट्रेन गार्ड ने उन्हें बताया कि गांधी तीसरे दर्जे में ट्रेन के सबसे आखिरी डिब्बे में हैं। वो कभी फर्स्ट क्लास में सफर नहीं करते।
जब समर्थकों ने सोने नहीं दिया
गांधी ने खुद एक बार भारतीय ट्रेन के अनुभव का जिक्र करते हुए लिखा कि हम बंगलौर से रात को ट्रेन से मद्रास जा रहे थे। हमें एक रात के आराम की सख्त जरूरत थी लेकिन हमें वो नसीब ही नहीं हुआ। आधी रात को हम लोग जोलारपेट जंक्शन पहुंचे। ट्रेन को वहां 40 मिनट तक ट्रेन केा रुकना था। हमारे साथ चल रहे मौलाना शौकत अली ने भीड़ से चले जाने के लिए कहा। लेकिन वो जितना अनुरोध करते वो उतनी ही ज़ोर से चिल्लाते और जयकारे लगाते मौलाना शौकत अली की जय! आखिर में मौलाना ने हार मान ली और वो आंख मूंद कर सोने का नाटक करने लगे। लोग डिब्बे की खिड़की से झांककर मौलाना और हमें देखने लगे।
गांधी ने खुद एक बार भारतीय ट्रेन के अनुभव का जिक्र करते हुए लिखा कि हम बंगलौर से रात को ट्रेन से मद्रास जा रहे थे। हमें एक रात के आराम की सख्त जरूरत थी लेकिन हमें वो नसीब ही नहीं हुआ। आधी रात को हम लोग जोलारपेट जंक्शन पहुंचे। ट्रेन को वहां 40 मिनट तक ट्रेन केा रुकना था। हमारे साथ चल रहे मौलाना शौकत अली ने भीड़ से चले जाने के लिए कहा। लेकिन वो जितना अनुरोध करते वो उतनी ही ज़ोर से चिल्लाते और जयकारे लगाते मौलाना शौकत अली की जय! आखिर में मौलाना ने हार मान ली और वो आंख मूंद कर सोने का नाटक करने लगे। लोग डिब्बे की खिड़की से झांककर मौलाना और हमें देखने लगे।
वो कितने क्रूर थे
लोग हमें देखने को इतने बेताब थे कि हमने जैसे ही डिब्बे की बत्ती बुझाई, वो लालटेनें ले आए। आखिर में मैंने ही सोचा कि मैं ही कुछ कोशिश करता हूं। मैं उठा और दरवाज़े की तरफ गया। मुझे देखते ही लोग खुशी से चिल्ला उठे। लेकिन मेरी किसी बात का उन पर कोई असर नहीं पड़ा। थक हार कर मैंने खिड़कियां बंद कर दीं। लेकिन वो कहां मानने वाले थे। वो बाहर से खिड़कियों को खोलने की कोशिश करने लगे। अपनी समझ में वो हमारे प्रति अपना प्यार दिखा रहे रहे थे, लेकिन वास्तव में वो कितने क्रूर और अतर्कसंगत थे।
लोग हमें देखने को इतने बेताब थे कि हमने जैसे ही डिब्बे की बत्ती बुझाई, वो लालटेनें ले आए। आखिर में मैंने ही सोचा कि मैं ही कुछ कोशिश करता हूं। मैं उठा और दरवाज़े की तरफ गया। मुझे देखते ही लोग खुशी से चिल्ला उठे। लेकिन मेरी किसी बात का उन पर कोई असर नहीं पड़ा। थक हार कर मैंने खिड़कियां बंद कर दीं। लेकिन वो कहां मानने वाले थे। वो बाहर से खिड़कियों को खोलने की कोशिश करने लगे। अपनी समझ में वो हमारे प्रति अपना प्यार दिखा रहे रहे थे, लेकिन वास्तव में वो कितने क्रूर और अतर्कसंगत थे।
सिर्फ कस्तूरबा के लिए संतरा लाए थे हरिलाल
महात्मा गांधी और रेल के संबंध का एक बहुत ही मार्मिक चित्रण प्रमोद कपूर ने भी गांधी पर लिखी अपनी जीवनी में किया है। प्रमोद कपूर ने अपनी किताब में लिखा कि एक बार हरिलाल को पता चला कि गांधी और बा ट्रेन से कटनी रेलवे स्टेशन से गुजरने वाले हैं। वो अपनी मां की एक झलक पाने के लिए कटनी स्टेशन पहुंच गए। वहां हर कोई महात्मा गांधी की जय के नारे लगा रहा था। सिर्फ़ हरिलाल ही थे जो चिल्ला रहे थे कि कस्तूरबा मां की जय। अपना नाम सुनकर बा ने उस शख्स की ओर देखा जो उनका नाम पुकार रहा था। प्लेटफॉर्म पर हरिलाल गांधी खड़े थे। उन्होंने तुरंत अपने झोले से एक संतरा निकाला और कहा बा ये मैं तुम्हारे लिए लाया हूं। ये सुन कर गांधी बोले, मेरे लिए क्या लाए हो हरिलाल ? हरिलाल का जवाब था, मैं ये सिर्फ़ बा के लिए लाया हूं।
महात्मा गांधी और रेल के संबंध का एक बहुत ही मार्मिक चित्रण प्रमोद कपूर ने भी गांधी पर लिखी अपनी जीवनी में किया है। प्रमोद कपूर ने अपनी किताब में लिखा कि एक बार हरिलाल को पता चला कि गांधी और बा ट्रेन से कटनी रेलवे स्टेशन से गुजरने वाले हैं। वो अपनी मां की एक झलक पाने के लिए कटनी स्टेशन पहुंच गए। वहां हर कोई महात्मा गांधी की जय के नारे लगा रहा था। सिर्फ़ हरिलाल ही थे जो चिल्ला रहे थे कि कस्तूरबा मां की जय। अपना नाम सुनकर बा ने उस शख्स की ओर देखा जो उनका नाम पुकार रहा था। प्लेटफॉर्म पर हरिलाल गांधी खड़े थे। उन्होंने तुरंत अपने झोले से एक संतरा निकाला और कहा बा ये मैं तुम्हारे लिए लाया हूं। ये सुन कर गांधी बोले, मेरे लिए क्या लाए हो हरिलाल ? हरिलाल का जवाब था, मैं ये सिर्फ़ बा के लिए लाया हूं।