राम मंदिर के भूमि पूजन समारोह से केवल दो दिन पहले न्यायमूर्ति लिब्रहान ने समाचार एजेंसी आईएएनएस से विशेष बातचीत में अपना विचार रखा। उन्होंने कहा कि व्यक्तिगत रूप से उन्हें हमेशा से ही यह महसूस होता रहा है कि अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण होगा।
गौरतलब है कि तत्कालीन पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ( PV Narsimha Rao ) की सरकार ने बाबरी मस्जिद विध्वंस के 10 दिनों के अंदर ही न्यायमूर्ति लिब्रहान की अध्यक्षता में जांच आयोग ( liberhan commission ) का गठन कर दिया था। उस वक्त जस्टिस लिब्रहान पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के सिटिंग जज थे। इसके बाद में उन्हें आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय का चीफ जस्टिस नियुक्त किया गया। जहां से 11 नवंबर 2000 को वह रिटायर हुए थे।
उन्होंने लिब्रहान आयोग का नेतृत्व किया। इस आयोग ने अपनी जांच पूरी करने में 17 साल का वक्त लिया था। आयोग की रिपोर्ट में उन घटनाओं के संबंध में सभी तथ्यों और परिस्थितियों को उजागर किया गया, जो 6 दिसंबर 1992 को राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद स्थल पर हुई थीं। आयोग की जांच और पूछताछ में भारतीय जनता पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं को बाबरी मस्जिद के विध्वंस के लिए जिम्मेदार ठहराया गया था। 30 जून 2009 को तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह को यह रिपोर्ट सौंपी गई थी।
जब पूर्व न्यायमूर्ति लिब्रहान ( manmohan singh liberhan ) से यह सवाल पूछा गया कि उन्हें यह क्यों लगता था कि विवादित जगह पर राम मंदिर ( Ram Mandir Nirman ) बनाया जाएगा, के जवाब में उन्होंने कहा, “यह एक निजी भावना है। मेरे पास इस बात को बताने के लिए कुछ नहीं है कि मुझे यह एहसास क्यों होता रहा है।”
जस्टिस लिब्रहान ( justice liberhan ) ने इस बात पर भी जोर दिया कि सभी को अयोध्या मामले ( Ayodhya Case ) पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सम्मान करना चाहिए। अयोध्या मामले पर सर्वोच्च न्यायालय के फैसले की आलोचना भी जारी है के सवाल पर उन्होंने जवाब दिया कि सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर निर्णय दिया है। लोगों को इसका सम्मान करना चाहिए। फैसले की आलोचना करने का कोई मतलब नहीं है।
बता दें कि लिब्रहान आयोग की जांच में यह निष्कर्ष निकला था कि बाबरी मस्जिद का विध्वंस एक सुनियोजित हमला था, जिसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ कैडर के एक विशेष दल ने अंजाम दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने भी अपने फैसले में इस बात की पुष्टि की है।
जब पूर्व जस्टिस से सवाल पूछा गया कि जब आप इस महत्वपूर्ण मुद्दे की जांच कर रहे थे तो क्या आपको किसी तरह के दबाव का सामना करना पड़ा था, इस सावल के जवाब में उन्होंने कहा कि मैंने कभी किसी दबाव का सामना नहीं किया।
गौरतलब है कि नवंबर 2019 में सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच जस्टिस की एक बेंच ने सर्वसम्मति से राम मंदिर के निर्माण के लिए हिंदुओं को विवादित भूमि सौंप दी थी।