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COVID-19 से ज्यादा खतरनाक बीमारी पर ‘सरकार’ का ध्यान नहीं, हर साल 4.5 लाख की होती है मौत

बिना जांच या इलाज के टीबी ( Tuberculosis disease ) के 3 लाख से ज्यादा अज्ञात मरीज हो सकते हैं हमारे बीच।
4.5 लाख भारतीय सालाना मारे जाते हैं टीबी ( Tuberculosis news ) से, 30 हजार भारतीय अब तक मारे गए कोरोना ( Coronavirus Pandemic ) से।
भारत में 9.5 लाख इस वर्ष Tuberculosis (TB) Disease के मरीज, 12 लाख अब तक कोरोना के मरीज।

Dangerous disease than COVID 19 is TB

मुकेश केजरीवाल/नई दिल्ली। कोरोना महामारी ( Coronavirus Pandemic ) के दौर में भारत में इससे भी ज्यादा जान लेने वाली बीमारी टीबी ( Tuberculosis ) या तपेदिक के इलाज में भारी उपेक्षा हो रही है। लॉकडाउन शुरू होने के बाद से टीबी के लगभग आधे मरीज सामने ही नहीं आ पा रहे हैं। अप्रैल से जून की तिमाही में सरकारी आंकड़ों के मुताबिक मरीजों की पहचान में 48 फीसदी की गिरावट आ गई है। समय से इनकी पहचान ( Tuberculosis disease ) नहीं होने की वजह से इनका इलाज ( Tuberculosis Treatment ) तो मुश्किल होगा ही दूसरों को संक्रमण का खतरा भी बढ़ जाएगा।
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केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक बीती तिमाही के दौरान देश भर में सिर्फ 3.39 लाख नए मरीजों की ही पहचान ( Tuberculosis Symptoms ) हो सकी है। जबकि पिछले साल इस दौरान 6.48 लाख मरीजों की पहचान ( Rising tuberculosis patient ) कर उनका इलाज शुरू कर दिया गया था। यानी हर महीने लगभग एक लाख मरीज की पहचान कम हो रही है।
क्या हैं वजहें

क्यों गंभीर

हमारे देश में अब भी सालाना साढ़े चार लाख लोग इस बीमारी ( Tuberculosis (TB) Disease ) से मारे जा रहे हैं। दुनिया भर के लगभग एक चौथाई टीबी मरीज भारत में ही हैं। इससे निपटने के लिए सबसे बड़ी चुनौती यही है कि नए मरीजों की समय से पहचान ( diagnosis of tuberculosis ) कर उनका इलाज ( control Tuberculosis ) शुरू किया जाए। पिछले कई दशकों से देश भर में इसकी जांच और इलाज पूरी तरह मुफ्त है।
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कहीं लॉकडाउन से तो नहीं घटा टीबी का प्रसार?

फाउंडेशन फॉर मेडिकल रिसर्च के निदेशक डॉ. नरगिस मिस्त्री कहते हैं कि ऐसा नहीं मान सकते क्योंकि टीबी ( Tuberculosis news ) का इनक्यूबेशन पीरियड काफी लंबा भी हो सकता है। इसका संक्रमण होने के एक से दो साल बाद भी लक्षण आ सकते हैं।
उन्होंने आगे कहा कि आम तौर पर लक्षण आने के भी 23 से 30 दिन बाद ही इसकी जांच होती है। यानी जो लोग लॉकडाउन से पहले संक्रमित हुए थे, उनकी पहचान भी इसी दौरान होनी थी। बाहर कम जाने से प्रसार की आशंका घटी होगी तो घर में बंद रहने से दूसरे सदस्यों में फैलने का खतरा बढ़ा है।
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अप्रैल से जून के दौरान नए मरीज

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