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नमक सत्याग्रहः महात्मा गांधी को क्यों करना पड़ा था ‘दांडी मार्च’

आज ही के दिन यानी 12 मार्च 1930 को महात्मा गांधी ने शुरू की थी दांडी यात्रा।
आजादी के 75वें वर्ष के समारोह की शुरुआत स्वरूप 21 दिन की दांडी यात्रा होगी शुरू।
अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ महात्मा गांधी के इस मार्च ने पूरे देश में व्यापक समर्थन दिलाया।

All about Salt Satyagraha: Why Mahatma Gandhi had to do 'Dandi March'

All about Salt Satyagraha: Why Mahatma Gandhi had to do ‘Dandi March’

नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश की आजादी के 75वें वर्ष के समारोह का शुभारंभ करने के लिए आज स्मृति स्वरूप ‘दांडी मार्च’ को हरी झंडी दिखाएंगे। प्रधानमंत्री मोदी द्वारा साबरमती आश्रम के पास पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के विश्राम स्थल अभय घाट के बगल में एक मैदान से 21 दिन लंबे दांडी मार्च को हरी झंडी दिखाई जाएगी। हालांकि ऐसे में 12 मार्च 1930 को हुआ दांडी मार्च या नमक सत्याग्रह क्या था और महात्मा गांधी को यह क्यों करना पड़ा, जानना बहुत जरूरी हो जाता है।
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क्या था दांडी मार्च

नमक मार्च जिसे दांडी मार्च या नमक सत्याग्रह भी कहा जाता है, मार्च-अप्रैल 1930 में महात्मा गांधी द्वारा भारत में किया गया प्रमुख अहिंसक आंदोलन था। यह मार्च गांधी द्वारा भारत में ब्रिटिश शासन के खिलाफ सविनय अवज्ञा (सत्याग्रह) आंदोलन का बड़ा स्वरूप था, जो 1931 की शुरुआत तक फैला और इसने गांधी को देश की आबादी के बीच व्यापक समर्थन दिलाने के साथ ही दुनिया भर में ध्यान आकर्षित किया।
यह थी नमक आंदोलन की वजह

दरअसल, उस वक्त भारत में नमक उत्पादन और वितरण पर लंबे समय से अंग्रेजों का एकाधिकार था। कई कानूनों के माध्यम से भारतीय आबादी को स्वतंत्र रूप से नमक का उत्पादन या बिक्री करने से प्रतिबंधित किया गया था। इसके बजाय भारतीयों को अक्सर आयात किए जाने वाले महंगे, ज्यादा करों वाले नमक खरीदने की जरूरत होती थी। इससे अधिकांश भारतीय प्रभावित हुए, जो गरीब थे और इसे खरीदने में असमर्थ थे। नमक कर के खिलाफ भारतीय विरोध 19वीं शताब्दी में शुरू हुआ और ब्रिटिश शासन की अवधि के दौरान एक प्रमुख विवादास्पद मुद्दा बना रहा।
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अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ कदम

1930 की शुरुआत में महात्मा गांधी ने बढ़ते हुए दमनकारी नमक कर के खिलाफ एक जबर्दस्त प्रदर्शन वाली यात्रा का फैसला किया जो गुजरात के साबरमती (अहमदाबाद के पास) के दांडी कस्बे (सूरत के पास) में मौजूद उनके आश्रम से अरब सागर तट तक की यात्रा थी। उन्होंने 12 मार्च को दर्जनों अनुयायियों के साथ पैदल यात्रा शुरू की।
कारवां बढ़ता गया

रोजाना मार्च के बाद इसमें शामिल समूह रास्ते में पड़ने वाले अलग-अलग गांव में रुकता गया, जहां गरीबों पर अनुचित कर के खिलाफ गांधी को सुनने के लिए भारी भीड़ इकट्ठा होती। जब 5 अप्रैल को लगभग 385 किमी की यात्रा के बाद मार्च दांडी पहुंचा, इसमें सैकड़ों लोग शामिल हो चुके थे। 6 अप्रैल की सुबह गांधी और उनके अनुयायियों ने तट के किनारे मुट्ठी भर नमक उठाया और इस तरह तकनीकी रूप से “नमक” का उत्पादन किया और तत्कालीन कानून को तोड़ा।
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जारी रहा सत्याग्रह

उस दिन कोई गिरफ्तारी नहीं हुई और गांधी ने अगले दो महीनों के लिए नमक कर के खिलाफ अपना सत्याग्रह जारी रखा। इस तरह उन्होंने अन्य भारतीयों को सविनय अवज्ञा के जरिये नमक कानूनों को तोड़ने के लिए प्रेरित किया। इस दौरान हजारों की तादाद में लोगों को गिरफ्तार किया गया।
सरोजनी नायडू ने भी किया नेतृत्व

अप्रैल में जवाहरलाल नेहरू और मई की शुरुआत में गांधी भी उस वक्त गिरफ्तार कर लिए गए जब उन्होंने भारत के वाइसराय लॉर्ड इरविन को पास के धरासाना नमक पर मार्च करने का इरादा बताया। गांधी की नजरबंदी की खबर ने हजारों की संख्या में लोगों को सत्याग्रह में शामिल होने के लिए प्रेरित किया। सरोजिनी नायडू के नेतृत्व में 21 मई को योजनाबद्ध तरीके से नमक मार्च आगे बढ़ा और करीब 2,500 शांतिपूर्ण मार्च में से कई पर पुलिस ने हमला किया और पीटा। साल के अंत तक लगभग 60,000 लोग जेल में थे।
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गांधी-इरविन समझौता

इसके बाद महात्मा गांधी को जनवरी 1931 में हिरासत से रिहा कर दिया गया और सत्याग्रह अभियान को समाप्त करने के उद्देश्य से लॉर्ड इरविन के साथ बातचीत शुरू हुई। बाद में एक समझौता घोषित किया गया, जिसे गांधी-इरविन समझौते का औपचारिक रूप दिया गया और इसे 5 मार्च को हस्ताक्षरित किया गया था। तनाव के शांत होने से लंदन में गोलमेज सम्मेलन के दूसरे सत्र (सितंबर-दिसंबर 1931) में भाग लेने के लिए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का प्रतिनिधित्व करते हुए गांधी के लिए मार्ग प्रशस्त हुआ।
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