दरअसल, आर्थिक समस्याओं से जूझ रहे कई राज्य लॉकडाउन के दौरान शराब बिक्री पर लगी रोक को हटाने चाहते हैं ताकि उनकी आर्थिक हालत ठीक। लेकिन, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ( pm modi ) ने साफ कहा है कि लॉकडाउन के दौरान शराब बिक्री पर पूरी तरह अभी पाबंदी लगी रहेगी। पीएम मोदी के इस फैसले के कारण राज्य और केन्द्र अब आमने-सामने हैं। बताया जा रहा है कि कई चीजों के बंद होने से राज्यों में आर्थिक संकट गहरा गई है। ऊपर से स्वास्थ्य व्यवस्था पर अलग से खर्च और लाखों बेरजगारों को मुफ्त में खाना देने के कारण देश और राज्य की आर्थिक हालत और माली हो गई है। इस पर शराब बिक्री पर पाबंदी से तकरीबन सात बिलियन प्रति दिन का नुकसान हो रहा है। पीएम के साथ बैठक के दौरान पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ( Amarinder Singh ) ने इस बात का भी जिक्र किया था।
यहां आपको बता दें कि सभी राज्यों के लिए शराब राजस्व का एक प्रमुख स्त्रोत है। पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने पिछले हफ्ते एक इंटरव्यू में कहा था कि इस हरजाने की भरपाई मैं कैसे करूंगा। क्या दिल्ली के लोग मुझे इसकी भरपाई करेंगे? सिंह ने कहा कि दिल्ली के लोग हमें एक रुपए तक नहीं देते। शराब को लेकर केन्द्र और राज्यों के बीच अचानक जंग छिड़ गई है। राज्यों का आरोप है कि केन्द्र के इस फैसले राज्यों को काफी नुकसान हो रहा है। वहीं, कोरोना संकट के कारण स्वास्थ्य व्यवस्था पर अलग खर्च का बोझ बढ़ रहा है। क्योंकि, भारतीय संविधान के अनुसार राज्यों के स्वास्थ्य व्यवस्था को मजबूत करने की जिम्मेवारी राज्य सरकार पर ही है।
गौरतलब है कि पीएम मोदी लंबे समय तक सहकारी संघवाद का विचार रखा था। इतना ही नहीं अपने पहले कार्यकाल में राज्यों के साथ मिलकर एक राष्ट्रव्यापी बिक्री कर तैयार किया था। लेकिन, उनके दूसरे कार्यकाल में राज्य सरकारों के साथ सहमति नहीं बनी। केरल के वित्त मंत्री थॉमस इसाक का कहना है कि शराब बिक्री पर रोक के कारण राज्य सरकारें संघर्ष कर रही हैं। तकरीब सभी फंड खत्म हो चुके हैं और नए फंड जुटाने के लिए अब कोई तरीका नहीं बचा है।
अर्थशास्त्री और सरकार के पूर्व सलाहकार एम गोविंद राव का कहना है कि शराब पर करों के अलावा, राज्य सरकारों के राजस्व के अन्य स्रोत ईंधन और अचल संपत्ति लेनदेन पर लॉकडाउन के कारण रोक लग गई है। उनका कहना है कि लॉकडाउन के कारण इनकम के सभी प्रमुख स्त्रोत पर रोक लग चुके हैं। उन्होंने आशंका जताई है कि इस वित्त वर्ष में भारत को 2.9 ट्रिलियन रुपए तक का घाटा लग सकता है। इसके अलावा राज्यों में पीएम राहत कोष पर भी सवाल उठाए हैं।