यह भी पढ़ेंः घर के बाहर खड़े बच्चों के हंसने के विवाद में हुआ पथराव और चली ताबड़तोड़ गोलियां, महिला समेत चार घायल 10 मई 1857 मेरठ के तीनों रेजीमेंट के बहादुर सिपाहियों ने खुली बगावत का झंडा उठाकर दिल्ली कूच किया था। इसमें महिलाओं ने भी सहयोग किया था। श्रीमती आशा देवी गुर्जर के पति सैनिक विद्रोह में शामिल थे तो आशा ने महिलाओं की टोलियां बनाकर 13 और 14 मई को कैराना और शामली की तहसील पर हमला बोल दिया था। इसके अलावा बख्ताबरी देवी, भगवती देवी त्यागी, हबीबी खातून गुर्जर, शोभा देवी ब्राह्मामणी, मामकौर गडरिया, भगवानी देवी, इंदरकौर जाट, जमीला पठान आदि सहित मेरठ-मुजफ्फरनगर की 255 महिलाएं फांसी चढ़ी। कुछ लड़ते-लड़ते शहीद हुई। असगरी बेगम को तो पकड़कर जिंदा जला दिया था।
यह भी पढ़ेंः कोरोना ने अंतिम विदाई का छीन लिया हक, अपने लोगों ने नहीं देखा चेहरा और न ही दे पाए कंधा 9 मई 1857 की सुबह परेड ग्राउंड पर कारतूस लेने से इनकार करने वाले तीसरी अश्वसेना के 85 भारतीय सिपाहियों का कोर्ट मार्शल कर दिया गया। जानबूझकर हजारों सैनिक इस घटना के दौरान मूक बने रहे। सिपाहियों को अपमानित करने के बाद विक्टोरिया पार्क स्थित जेल में भेज दिया गया। 10 मई की शाम 5 बजे गिरजाघर घंटा बजता है। इसके बाद साढ़े छह बजे इन्हीं सिपाहियों ने अपने साथी 85 सिपाहियों को जेल से मुक्त कराया। ब्रिटिश सेना के प्रतीकों को हिंसा और आगजनी का शिकार बनाया। इस दौरान कई अंग्रेजों की हत्या कर दी गई। सिपाहियों की कई टोलियां पूर्व नियोजित कार्यक्रम के तहत ‘दिल्ली चलो’ अभियान को अंजाम देती हुई दिल्ली पहुंच गईं।
यह भी पढ़ेंः फल, सब्जी, किराना व्यापारियों के बाद अब इस बाजार में पहुंच गया कोरोना वायरस, रोजाना बढ़ रहे कोरोना संक्रमित 11 मई की सुबह सैनिक मेरठ से बड़ी संख्या में दिल्ली पहुंचे। यहां बहादुर शाह का फरमान ब्रिटिश अधिकारियों को दिया गया कि वे दिल्ली के शस्त्रागार को शाही सेना के सुपुर्द कर दें। मारो फिरंगी अभियान के बाद 14 मई को दिल्ली पर क्रांतिकारियों का कब्जा हो गया। इस तरह से 10 मई 1857 प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में एक खास दिन बन गया था।