मेरठ

महज 30 साल का है फांसी लगाकर आत्महत्या करने वाले डॉक्टर आनंद की कामयाबी का सफर

30 साल में वेस्ट यूपी से दिल्ली तक छा गया था आनंद हॉस्पिटल का नाम, किसी से नहीं साेचा था ऐसे हाेगा अंत

मेरठJun 28, 2020 / 02:04 pm

shivmani tyagi

anand

मेरठ। नाम हरिओम आनंद, उम्र करीब 65 वर्ष। यह नाम पश्चिम उत्तर प्रदेश ही नहीं उत्तरी भारत में किसी परिचय का मोहताज नहीं था। कभी सोचा नहीं था कि रोज बुलंदी जिसके दरवाजे पर खुद दस्तक देती है वह एक दिन दुनिया से ऐसे विदा हो जाएगा आत्महत्या कर लेगा।
वक्त की पुकार कहें या संघर्ष का दूसरा नाम, मगर हरिओम आनंद चिकित्सा जगत में कामयाबी के फलक पर ऐसे चमके कि दुनिया के लिए नजीर बन गए लेकिन यह कुदरत को शायद मंजूर नहीं था। जिस आनंद अस्पताल का नाम कभी पश्चिम उत्तर प्रदेश ही नहीं हरियाणा और दिल्ली तक चिकित्सा और सुविधाओं के लिए जाना जाता था वह आनंद अस्पताल 2020 आते-आते बर्बादी के कगार पर आ जाएगा।
एसा समय आएगा कि, मालिक हरिओम आनंद ही जहर खाकर अपनी जान दे देंगे। आज हरिओम आनंद भले ही इस दुनिया से विदा हो गए हों लेकिन उसके विरोधी और उनके शुभचिंतकों की आंखों में आंसू हैं।
80 के दशक से शुरू हुआसफर 2020 में हुआ खत्म
आनंद के मालिक हरिओम आनंद यूं ही अर्श से फर्श पर नहीं पहुंचे। उनकी कामयाबी काे जानने के लिए हमे 30 साल पहले हमको जाना होगा। यह वह दौर था जब दो दोस्त मेरठ के चिकित्सा जगत में एक मील का पत्थर रखने जा रहे थे। ये दो दोस्त थे डा0 अतुल कृष्ण भटनागर जो कि आज सुभारती एंपायर के मालिक हैं और दूसरे थे हरिओम आनंद। दोनों दोस्तों ने मेरठ में लोकप्रिय अस्पताल की नींव रखी। सभी चिकित्सीय सुविधाओं से सुसज्जित लोकप्रिय अस्पताल ने ऐसी रफ्तार पकड़ी कि उसके सामने अन्य सभी अस्पताल पानी भरने लगे।
अस्पताल चल निकला तो दोनों पार्टनर दोस्तों ने सुभारती अस्पताल की नींव डाली। सुभारती अस्पताल को लेकर दोनों ने जो सपना देखा हालांकि उसे आज अकेले डा0 अतुल कृष्ण ने पूरा किया लेकिन उसमें हरिओम आनंद का भी योगदान कुछ कम नहीं रहा।
कारोबार बढा तो पड़ने लगी दोस्ती में दरार
दोनों दोस्तों का कारोबार बढ़ा तो दोस्ती में भी दरार पड़नी शुरू हो गई। धीरे-धीरे दोनों ने अपनी राह अलग कर ली। जून 2006 में मेरठ की थापर कॉलोनी में विश्वविद्यालय के अकाउंटेंट निर्मल शर्मा की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। उनका विश्वविद्यालय प्रबंधन से किसी बात को लेकर विवाद चल रहा था। घटना के बाद मृतक के साले तुहीन बिश्नाेई ने सदर बाजार थाने में विश्वविद्यालय के कई पदाधिकारियों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराई थी। हाई कोर्ट के आदेश पर 31 अक्टूबर 2007 को यह केस सीबीआई को सौंप दिया गया। सीबीआई ने तेजवीर सिंह, मोहम्मद इरफान, कुसुमवीर सिंह, मुकेश और कुलदीप सिंह के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया। सीबीआई ने सुभारती यूनिवर्सिटी के मालिक अतुल भटनागर को भी आरोपित बनाया था। इस घटना के बाद से हरिओम आनंद ने अपने को पूरी तरह से सुभारती से अलग कर लिया। जिसके बाद आनंद अस्पताल की नींव पड़ी।
मात्र दस साल में आनंद ने चिकित्सा जगत में गाड़ दिए झंडे
आनंद अस्पताल बना तो इनमें चिकित्सा जगत से जुड़ी हर वो सुविधा प्रदान की गई जो शायद दिल्ली के अपोलो, मैक्स और फोर्टिस जैसे अस्पतालों में भी न हो। इस अस्पताल ने देश के नामी अस्पतालों को टक्कर देनी शुरू कर दी। इसके चलते हर नामी चिकित्सक आनंद अस्पताल में आकर मरीजों को देखना अपनी शान समझने लगा। सुबह और शाम आनंद अस्पताल में नामी चिकित्सकों की लाइन लगी रहती थी। यहां तक कि दिल्ली से भी चिकित्सक अपनी सेवाएं देने यहां पर आते थे।
कर्ज और ब्याज ने डूबो दिया आनंद सम्राज्य
आनंद अस्पताल के मालिक हरिओम आनंद को बैंक से लिए कर्ज और लोगों से लिए कर्ज के ब्याज ने कहीं का नहीं छोड़ा। हर किसी के साथ दुख-सुख में साथ खड़े रहने वाले हरिओम आनंद का साथ भी धीरे-धीरे सभी छोड़ते चले गए और एक दिन ऐसा आया कि खुद आनंद ने भी अपने आपको अकेला पाकर दुनिया ही छोड़ दी।

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