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गढ़ रोड स्थित एक अस्पताल में दो मरीज इसी बीमारी का इलाज कराने के लिए भर्ती हुए हैं। इन मरीजों का इलाज करने वाले चिकित्सक संदीप गर्ग ने बताया कि कोरोना से ठीक हुए मरीज म्यूकर माइकोसिस यानी ब्लैक फंगस या काली फफूंद से संक्रमित पाए गए हैं। कोरोना की पहली लहर के दौरान ऐसे मरीजों की संख्या देश में बहुत कम थी। उन्होंने बताया कि समुद्र तटीय राज्यों महाराष्ट्र और गुजरात में खासतौर पर म्यूकर माइकोसिस के केस बढ़ रहे हैं। ये अधिकतर कोरोना संक्रमण से ठीक हुए मरीजों को अपनी गिरफ्त में ले रहा है। उन्होंने बताया कि कोरोना का इलाज करने के दौरान स्ट्राइड के ज्यादा इस्तेमाल से और शुगर बढ़ने के कारण आंख में बहुत ज्यादा सूजन आ जाती है यह इसका मुख्य लक्षण है। मरीजों की एक-एक आंख बुरी तरह से सूज जाती हैं। दिमाग, फेफड़े प्रभावित कर सकता है ब्लैक फंगस
ब्लैक फंगस या म्यूकर माइकोसिस फंगस की वजह से होने वाला दुर्लभ संक्रमण है। इंसान की नाक और बलगम में भी ये पाया जाता है। इससे साइनस, दिमाग, फेफड़े प्रभावित होते हैं। ये डायबिटीज के मरीजों या कम इम्युनिटी वाले लोगों, कैंसर या एड्स के मरीजों के लिए घातक भी हो सकता है। ब्लैक फंगस में मृत्यु दर 50 से 60 प्रतिशत तक होती है।
ब्लैक फंगस या म्यूकर माइकोसिस फंगस की वजह से होने वाला दुर्लभ संक्रमण है। इंसान की नाक और बलगम में भी ये पाया जाता है। इससे साइनस, दिमाग, फेफड़े प्रभावित होते हैं। ये डायबिटीज के मरीजों या कम इम्युनिटी वाले लोगों, कैंसर या एड्स के मरीजों के लिए घातक भी हो सकता है। ब्लैक फंगस में मृत्यु दर 50 से 60 प्रतिशत तक होती है।
ये होते हैं ब्लैक फंगस के लक्षण
बीमारी में मरीज की नाक का बहना, चेहरे का सूजना, आंखों के पीछे वाले हिस्से में दर्द, खासी, मुंह के न भरने वाले छाले, दातों का हिलना और मसूड़ों में पस पड़ना आदि लक्षण दिखते हैं। ब्लैक फंगस को अक्सर कोविड के इलाज के दौरान दी गई दवाओं का साइड इफेक्ट माना जाता है।
बीमारी में मरीज की नाक का बहना, चेहरे का सूजना, आंखों के पीछे वाले हिस्से में दर्द, खासी, मुंह के न भरने वाले छाले, दातों का हिलना और मसूड़ों में पस पड़ना आदि लक्षण दिखते हैं। ब्लैक फंगस को अक्सर कोविड के इलाज के दौरान दी गई दवाओं का साइड इफेक्ट माना जाता है।