उन्होंने बताया कि चार साल पहले लोग यहां बंदरों को मार रहे थे। सभी बंदरों को मार दिया गया। यह अकेला बंदर बचा, जो घायल अवस्था में पड़ा था। फिर हमने इसका इलाज किया और इसे बचाया। फिर इस बंदर को यहां के लोगों से प्यार हो गया और यहा यहां आने लगा। हम लोगों ने इसे खाना भी खिलाना शुरू कर दिया।
रोज भांग की ठंडाई पीते आता है बंदर
उन्होंने बताया कि हम लोग रोजाना भगवान ठाकुर को बिजिया (भांग) चढ़ाते हैं। एक दिन उस अवसर पर यह बंदर भी पहुंच गया। हम लोगों ने उसे भांग दे दी, तो वो पी गया। तब से वह रोजाना यहां आता है और करीब एक लोटा भांग पीकर चला जाता है। भांग की ठंडाई बनाने के लिए काजू और अन्य सूखे मेवों को पीसकर उसमें मिलाया जाता है। एक पंडित ने बताया कि हम ठाकुरजी को प्रतिदिन भांग का घोल चढ़ाने के लिए तैयार करते हैं। यह बंदर भी रोज यहां आता है और ठंडाई पीकर चला जाता है। उन्होंने बताया कि बंदर रोज यहां आकर चुपचाप बैठ जाता है और जब उसे ठंडाई दी जाती है तो वह पीकर चला जाता है।