सावन में झूला उत्सव सावन में ब्रज में झूला उत्सव मनाया जाता है। भगवान बांके बिहारी राधा रानी के साथ सावन में झूला झूलते थे। द्वारिकाधीश और नंदगांव में जहां भगवान पूरे महीने झूला झूलते हैं वहींए बांके बिहारी हरियाली तीज के दिन ही झूले में विराजमान होते हैं।
यह भी पढ़ें – अब अंग्रेजी में गूंजेगी रामचरितमानस की चौपाईयां, जानें कैसे झूला उत्सव की परंपरा कब से शुरू हुई जानें मथुरा में ब्रज में झूला उत्सव की यह परंपरा उस वक्त से है जब द्वापर युग में भगवान कृष्ण ने राधा रानी को झूला झुलाया। मथुरा में हरियाली तीज से लेकर रक्षाबंधन तक 13 दिन तक भगवान को झूले में विराजमान किया जाता है। पर बांके बिहारी मंदिर में, साल में सिर्फ हरियाली तीज पर झूला दर्शन होते हैं। हरियाली तीज पर महिलाएं गोपियों के रूप में अपना सोलह शृंगार करती हैं। कान्हा को प्रेम संग घेवर, फेनी का भोग लगाती हैं। और मल्हार गाती है।
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बांके बिहारी मंदिर में हरियाली तीज के बड़े झूले का इतिहास बेहद रोचक है। झूले का निर्माण महात्मा गांधी के भारत छोड़ो आंदोलन संग शुरू हुआ। और वर्ष 1947 में यह बनकर तैयार हुआ। भगवान बांके बिहारी पहली बार देश की आजादी के दिन 15 अगस्त 1947 को इस झूले पर विराजमान हुए। 15 अगस्त 1947 को हरियाली तीज का पर्व था। इस झूले की लागत उस वक्त करीब 25 लाख रुपए की आई थी। इसे काशी के कारीगर छोटे लाल और ललन भाई ने 20 कारीगरों के साथ मिलकर 5 साल में तैयार किया था।
हरियाली तीज पर दर्शन का बदला समय हरियाली तीज पर मंदिर प्रबंधन ने भगवान के दर्शन के समय में बदलाव किया। आम दिनों से ज्यादा समय तक खोलने का निर्णय लिया है।