शिक्षकों की कमी होगी दूर
शिक्षा की दृष्टि से आज भी मंडला जिला काफी पिछड़ा हुआ माना जाता है, ऐसा नहीं है कि यहां स्कूलों की कमी है, जिले में गांव-गांव स्कूलों की सुविधा है, बड़ी संख्या में छात्रों के लिए छात्रावास की भी सुविधा दी जा रही है लेकिन स्कूलों में पढ़ाने के लिए शिक्षक नहीं है, आधा सैकड़ा से अधिक सरकारी स्कूल शिक्षक विहीन है जो अतिथि शिक्षकों के भरोसे संचालित हो रहे हैं। वैसे तो स्कूलों की तरह पर्याप्त शिक्षक भी हैं लेकिन समस्या यह है कि राजनैतिक दवाब, लेन-देन या फिर अन्य माध्यमों से दवाब बनवाकर अधिकांश शिक्षक मुख्यालय या फिर आसपास के स्कूलों में ही सालों से डेरा डाले हुए हैं इनमें कुछ शिक्षक तो ऐसे भी सामने आ चुके हैं जिन्होंने अपनी जगह किराये का शिक्षक स्कूल में रखा हुआ है और वे खुद अध्यापन छोड़कर अपने अन्य निजी कार्यों में लगे रहते हैं या फिर शिक्षक संगठनों से जुड़कर राजनैतिक गतिविधियों में लगे रहते हैं। जो स्कूल शिक्षक विहीन बताए जा रहे हैं उनमें अधिकांश प्राइमरी स्कूल शामिल है जहां बच्चों की पढ़ाई की शुरूआत होती है लेकिन रैग्यूलर
शिक्षा की दृष्टि से आज भी मंडला जिला काफी पिछड़ा हुआ माना जाता है, ऐसा नहीं है कि यहां स्कूलों की कमी है, जिले में गांव-गांव स्कूलों की सुविधा है, बड़ी संख्या में छात्रों के लिए छात्रावास की भी सुविधा दी जा रही है लेकिन स्कूलों में पढ़ाने के लिए शिक्षक नहीं है, आधा सैकड़ा से अधिक सरकारी स्कूल शिक्षक विहीन है जो अतिथि शिक्षकों के भरोसे संचालित हो रहे हैं। वैसे तो स्कूलों की तरह पर्याप्त शिक्षक भी हैं लेकिन समस्या यह है कि राजनैतिक दवाब, लेन-देन या फिर अन्य माध्यमों से दवाब बनवाकर अधिकांश शिक्षक मुख्यालय या फिर आसपास के स्कूलों में ही सालों से डेरा डाले हुए हैं इनमें कुछ शिक्षक तो ऐसे भी सामने आ चुके हैं जिन्होंने अपनी जगह किराये का शिक्षक स्कूल में रखा हुआ है और वे खुद अध्यापन छोड़कर अपने अन्य निजी कार्यों में लगे रहते हैं या फिर शिक्षक संगठनों से जुड़कर राजनैतिक गतिविधियों में लगे रहते हैं। जो स्कूल शिक्षक विहीन बताए जा रहे हैं उनमें अधिकांश प्राइमरी स्कूल शामिल है जहां बच्चों की पढ़ाई की शुरूआत होती है लेकिन रैग्यूलर