मैनेजमेंट मंत्र

यहां झाड़ु लगाने की भी लगती है बोली, बदले में मिलते हैं “सोना-चांदी”

इस काम को करने वाले लोगों को नियारगर कहा जाता है। बहुत से लोग घर के बाहर बह रही नालियों में भी पानी को छानकर कचरा एकट्ठा करते हैं।

Apr 02, 2019 / 02:23 pm

सुनील शर्मा

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आपने जमीन से सोना-चांदी निकलने की बात तो सुनी होगी, लेकिन देश के कुछ बड़े शहरों में कई गलियां (या जगहें) ऐसी भी होती हैं जहां का कचरा व मिट्टी भी बेशकीमती होता है। यही नहीं, इस गली की मिट्टी व कचरा निकालने के लिए भी बोली लगती है। इस कचरे की कीमतें भी इतनी अधिक होती है कि सुनकर आप अपनी सुध-बुध खो सकते हैं।

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शायद आप नहीं जानते होंगे परन्तु पुराने समय में भारत के कुछ शहरों में सर्राफा बाजार बनाए गए थे, जो आज भी है। यहां नालियों में व सडक़ों पर गिरी मिट्टी को एकत्र कर कुछ परिवार इसमें से सोना-चांदी तक निकाल लेते हैं। दरअसल, सुनार जब काम करते हैं, तो सोने-चांदी की घिसाई व कटाई के दौरान बारीक कण बिखर जाते हैं। दुकानों की सफाई करते समय नालियों में तथा सडक़ों पर बिखर जाते हैं। कुछ परिवार बरसों से इस मिट्टी में से सोना-चांदी निकालते हैं।

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पहुंच जाते हैं सुबह 5 बजे
ये लोग अलसवेरे जेवरात बनाने वालों की दुकानों के बाहर से मिट्टी एकत्र करते हैं। पिछले कई दशको से ऐसा काम करने वाले एक परिवार ने बताया कि वे कचरे में निकले धातु के कणों को तेजाब की भट्टी में तपाकर सोने और चांदी की अलग-अलग डली बना लेते हैं। इस काम को करने वाले लोगों को नियारगर कहा जाता है। बहुत से लोग घर के बाहर बह रही नालियों में भी पानी को छानकर कचरा एकट्ठा करते हैं और उसमें से सोना-चांदी निकालने का काम करते हैं।

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कचरा देख बताते हैं राशि
सर्राफा व्यापारी जसवंत सोनी ने बताया कि नियारगर कचरा देखकर राशि तय करते हैं। यदि किसी छोटी-मोटी दुकान का सालभर का कचरा हो तो ही 25 से 30 हजार रुपए मिल जाते हैं। कई बार एक से अधिक नियारगर होने पर दुकान के कचरे व मिट्टी की बोली भी लगती है।

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