मैनेजमेंट मंत्र

न पढ़ाई, न लिखाई, न पैसा लगाने का झंझट, ऐसे कमाएं करोड़ों

युवाओं के लिए यह अच्छा अवसर है।

Apr 09, 2019 / 11:47 am

सुनील शर्मा

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चुनाव विश्लेषक के रूप में कॅरियर की बात सुनकर भले ही अटपटा लगे लेकिन राजनीति में दिलचस्पी रखने वाले युवाओं के लिए यह अच्छा अवसर है। भारत एक लोकतांत्रिक देश है। यहां समय-समय पर चुनाव होते रहते हैं। जैसा कि अभी लोकसभा के चुनाव होने वाले हैं। इसमें एग्जिट पोल, प्री पोल सर्वे भी होता है।

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इसमें वहीं लोग सफल होते हैं, जो लगन के साथ मेहनत करते हैं। ऐसे में यह रोजगार का एक अच्छा विकल्प हो सकता है। यह काम करने वाले चुनाव विश्लेषक या सेफोलॉजिस्ट कहलाते हैं। सेफोलॉस्टि शब्द का प्रयोग पहली बार 1948 लंदन में किया गया था। इसकी पढ़ाई सेफोलॉजी में होती है। सेफोलॉजी ग्रीक के सेफोस शब्द से बना है जिसका अर्थ कंकड़ है। ग्रीस में कभी कंकड़ का इस्तेमाल कर चुनाव होते थे।

इनके काम
चुनाव विश्लेषक का काम चुनाव से जुड़े आंकड़ों और लोगों पर नजर बनाए रखने का होता है। जैसे कब किस पार्टी या उम्मीदवार को कैसे या किस परिस्थिति में कितने मत मिले थे। अगर कोई चुनाव जीता तो क्या कारण थे और हारने की वजह क्या थी। इसमें वे चुनाव से पहले और बाद भी आंकलन करते हैं। काम के सिलसिले में प्रोफेशनल्स को चुनावी क्षेत्रों का दौरा भी करना होता है। एग्जिट पोल के नतीजों की सार्थकता को देखते हुए इनके काम की हर जगह पूछ है तथा लगभग सभी पार्टियां इनकी सेवाएं लेती हैं। इसके लिए उनको अच्छा पैसा भी देना पड़ता है। कई चुनाव विशषकों की अपनी एक टीम भी होती है। प्रशांत किशोर और योगेंद्र यादव इसके उदाहरण हैं।

कैसे होती है इसकी पढ़ाई
चुनाव विश्लेषक बनने के लिए देश में कोई खास कोर्स नहीं है। अभी तो वही लोग इसमें ज्यादा दिलचस्पी दिखाते हैं जो पत्रकारिता, समाजशास्त्र, राजनीति शास्त्र और सांख्यिकी से जुड़े रहे हैं। इस क्षेत्र की कार्यशैली व गंभीरता को देखते हुए इसमें पोस्ट ग्रेजुएट कोर्स को ही मुफीद माना जाता है। यदि छात्र के पास राजनीति शास्त्र व समाजशास्त्र अथवा सांख्यिकी में से किसी एक में डॉक्टरेट की डिग्री है तो उन्हें वरीयता दी जाती है। हालिया एक-दो वर्षों में कुछ विश्वविद्यालयों ने सेफोलॉजी में सर्टिफिकेट कोर्स शुरू किए हैं, जिनके जरिए वे विश्लेषकों की टीम तैयार कर रहे हैं।

किन बातों का रखना होता है ध्यान
राजनीतिक आंकड़ों को समझने के लिए जनसांख्यिकी पैटर्न को गहराई से समझना जरूरी होता है। साथ ही उन्हें जातिगत समीकरणों व राजनीतिक हलचलों से खुद को अपडेट रखना पड़ता है। इसके एक्सपर्ट आंकड़ों पर विशेष ध्यान रखते हैं। एक अच्छा विश्लेषक बनने के लिए यह आवश्यक है कि प्रोफेशनल्स स्थानीय मतों के धु्रवीकरण को समझे, अन्यथा वह एक स्वस्थ व निर्विवाद निष्कर्ष पर कभी नहीं पहुंच सकता है। साथ ही कंप्यूटर व इंटरनेट की जानकारी भी आवश्यक है ताकि वे आंकड़ों को एकत्रित कर सके।

एजेंसी और न्यूज चैनल में अवसर
चुनाव विश्लेषक को सरकारी व प्राइवेट दोनों जगह अवसर मिल सकते हैं। चुनावी सर्वे या रिसर्च कराने वाली एजेंसियों, टेलीविजन चैनल, समाचार पत्र-पत्रिकाओं, प्रमुख राजनीतिक दलों व एनजीओ आदि को पर्याप्त संख्या में इनकी जरूरत होती है। इसके अलावा पॉलिटिकल एडवाइजर, टीचिंग, संसदीय कार्य तथा पॉलिटिकल रिपोर्टिंग में इन लोगों की बेहद मांग है। इसमें शुरुआती सैलरी भी 35-40 हजार रुपए से शुरू होती है।

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