यह भी पढ़ें
निकाय चुनाव से ठीक पहले डिप्टी सीएम बृजेश पाठक ने सपा-कांग्रेस में लगाई सेंध, जानें कौन भाजपा से जुड़ा
सिरदर्द , चमक, आंख की लाली जैसे लक्षण है तो सावधान उन्होंने बताया कि अगर किसी की दृष्टि में धुंधलापन , प्रकाश संवेदनशीलता, सिरदर्द , चमक, आंख की लाली जैसे लक्षण हैं तो उसे फौरन आंख विशेषज्ञ को दिखाना चाहिए। ये टीबी के लक्षण हो सकते हैं। समय से इलाज न हो पाने पर आंखों की रोशनी जा सकती है। यहां तक की आंख पूरी तरह खराब भी हो जाती है। अगर विशेषज्ञ की बात मानकर जांच व इलाज करा लिया जाए तो इन समस्याओं से बचा जा सकता है। यह भी पढ़ें
लखनऊ के बंथरा में तेंदुआ देख सहमे लोग, पुलिस के साथ खेल रहा लुकाछिपी
2022 की रिपोर्ट ने बताई वजह टीबी की साल 2022 की रिपोर्ट के मुताबिक उत्तर प्रदेश में एक्सट्रा पल्मोनरी टीबी के केस फेफड़ों की टीबी के केस की तुलना में एक तिहाई हैं। रिपोर्ट बताती है कि फेफड़े की टीबी के यूपी में बीते साल कुल 3,41,444 आए जबकि इसी दौरान एक्सट्रा पल्मोनरी टीबी के 1,12,268 केस प्रदेश में पाए गए हैं। बड़ी चुनौती हैं रोगियों की दवा का शुरू करवाना सीतापुर नेत्र चिकित्सालय के सीनियर परामर्शदाता डॉ. इंद्रनिल साहा के अनुसार आंख की टीबी किसी भी उम्र हो सकती है। आंख की टीबी के कुछ मरीज हैं, जिनकी पहचान हो पाती है जबकि जागरूकता और डायग्नोसिस के अभाव में बहुत से मरीजों की पहचान नहीं हो पाती है। सबसे बड़ी चुनौती इन रोगियों में टीबी की दवा का शुरू करना है, क्योंकि चिकित्सकों को टिशु पाजिटिव साक्ष्य की जरूरत होती है।
रोगी बंद कर देते है दवा यह केवल रोगी की आंख से नमूना लेने से ही संभव होगा जो आमतौर पर अत्यंत आवश्यक होने तक नहीं किया जाता है। इसलिए मरीजों का इलाज डाक्टर अपने क्लीनिकल अनुभव और दूसरे टेस्ट के आधार पर करते हैं। उन्होंने कहा कि कभी-कभी जब चिकित्सक टीबी की दवा शुरू करने से इनकार करते हैं तो नेत्र रोग विशेषज्ञों को रोगी के हित में दवा शुरू करना पड़ता है। उनकी प्रैक्टिस में हर माह पांच से छह मरीज आंखों की टीबी के आ रहे हैं।
मोतियाबिंद, ग्लूकोमा के बाद अंधता की प्रमुख वजह इंदिरा गांधी नेत्र चिकित्सालय की सहायक प्रोफेसर डॉ. अश्विनी ने बताया कि कई केस में फेफड़ों की टीबी न होने पर भी आंखों में टीबी हो रही है। इसके लिए जरूरी है कि मरीज की स्क्रीनिंग करने के साथ पीसीआर जांच कराई जाए। शुरुआती लक्षण को कंजेक्टिवाइटिस समझ कर इलाज होता है, जबकि इसमें नेत्र दिव्यांगता का खतरा सर्वाधिक है। मोतियाबिंद, ग्लूकोमा के बाद अंधता की प्रमुख वजह यह है। जिन्हें टीबी है, उनकी आंखों में टीबी का खतरा अधिक होता है। कई बार व्यक्ति को टीबी का संक्रमण नहीं होने पर भी आंखों की टीबी होती है।