लखनऊ. कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर और लाॅकडाउन से आम उत्पादकों की कमर टूट गई है। पैदावार तो ठीक हुई है, लेकिन हालात ऐसे बने हैं कि आम विदेशी बाजारों तक तो जाने से रहे स्थानीय मंडियों तक पहुंचने में भी काफी परेशनियां सामने आएंगी। तूफान ताऊते के चलते आंधी-बारिश से भी आम की फसल को काफी नुकसान पहुंच चुका है। पिछले साल आर्थिक नुकसान झेल चुके आम उत्पादकों के लिये 2021 भी फायदेमंद नहीं दिख रहा। आम उत्पादन में देश में काफी अहम स्थान रखने के चलते यूपी के लिये ये नुकसान बेहद मायने रखता है।
कहा जाता है कि देश भर का करीब 24 प्रतिशत आम उत्पादन अकेले उत्तर प्रदेश में होता है। मलीहाबाद, शाहाबाद, सहारनपुर समेत यूपी में 15 मैंगो बेल्ट हैं। इसके अलावा पूर्वी उत्तर प्रदेश के भी कुछ क्षेत्रों में आम उत्पादन होता है। आमतौर पर मई का महीना इसके लिये बेहद महत्वपूर्ण होता है क्योंकि अब तक फलों की तोड़ाई शुरू हो चुकी होती है। पर इस बार कोरोना संक्रमण के चलते फिर से लाॅक डाउन जैसे प्रतिबंध से ये पिछड़ गई। इस बीच आंधी-बारिश ने करीब 15 से 20 प्रतिशत फसल को नुकसान पहुंचाया तो तो लाॅक डाउन के चलते तोड़ाई रुक गई है।
उत्तर प्रदेश के आमों का यूएई, यूके कतर, सऊदी अरेबिया समेत मुल्कों में निर्यात होता है। आम उत्पादक संघ के पूर्व मंत्री इंसराम अली के मुताबिक यूपी से करीब 800 टन आम का निर्यात विदेशों को होता है। पर कोरोना संक्रमण के चलते फ्लाइट न चलने से निर्यात बड़े पैमाने पर प्रभावित हो सकता है। साल 2020 में भी कोविड महामारी और लाॅक डाउन के चलते आम की फसल का निर्यात नहीं हो सका था। कुछ उत्पादकों का कहना है कि पहले से मिले ऑर्डर भी निरस्त हो रहे हैं।
महामारी में सिर्फ जान बचाने के लिये ही नहीं कारोबार और खेती के लिये भी जद्दोजेहद करनी पड़ रही है। लाॅक डाउन में सबकुछ प्रतिबंधों के दायरे में ही चल रहा है। कोरोना की पहली लहर से टूट चुके आम उत्पादकों के लिये दूसरी लहर और ज्यादा नुकसानदेह साबित होने वाली है। हालात सामान्य होते तो उन्हें अपनी फसल का पूरा मुनाफा मिलता। पर ऐसा नहीं हुआ और रही सही कसर खराब मौसम ने पूरी कर दी। कारोबार से जुड़े नसीम की मानें तो बीते साल आम के व्यापार में करीब एक हजार करोड़ का नुकसान हुआ था। इस बार भी हालात कुछ ठीक नहीं।
पद्मश्री सम्मान से नवाजे जा चुके आम उत्पादक कलीमुल्लाह बताते हैं कि 24 मई तक लाॅक डाउन होने के चलते आम की तोड़ाई शुरू नहीं हो पाई है, 17 से 20 मई तक आम तोड़ने का काम शुरू हो जाता था। लखनऊ के पश्चिम में आम का बेल्ट 27,000 एकड़ में फैला है और यहां हर वर्ष औसतन छह लाख मीट्रिक टन आम की पैदावार होती है। दूसरी बार ऐसी स्थिति आने के चलते मलीहाबाद के दसहरी आम व दूसरे आम के किसान अभी से नुकसान को लेकर चिंतित हैं। पिछले साल के सैकड़ों करोड़ के नुकसान के बाद उत्पादक एक और नुकसान झेलने की स्थिति में नहीं हैं। उनकी मांग है कि इस संकट से उबारने में सरकार उनकी मदद करे। आम उत्पादकों को डर है कि अगर कोरोना का संकट इसी तरह जारी रहा तो स्थानीय मंडियों में भी उनके आमों की कीमत गिरेगी। किसानों को नुकसन से उबारने के लिये फैक्ट्रियों से बात करके लोकल लेबल पर इसकी खरीद जैसा कोई इंतजाम कारगर साबित हो सकता है।