उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से करीब 120 किलोमीटर दूर हरदोई जिले साण्डी ब्लाक क्षेत्र के गांव भदार के एक किसान सुनील सिंह की बेटी अंतिमा सिंह ने जिले के साथ-साथ पूरे प्रदेश की लड़कियों के सामने एक मिसाल पेश किया। चार बच्चों में तीसरे नंबर की अंतिमा सिंह ने हाईस्कूल और इंटरमीडिएट की पढ़ाई शहर के श्रीबेनीमाधव विद्यापीठ (एडेड विद्यालय) से पूरी की है। बिलग्राम तहसील क्षेत्र के सदरपुर में स्थित रामलाल महाविद्यालय से स्नातक की डिग्री हासिल की। इस वक्त एटा में डीएलएड की पढ़ाई कर रही हैं।
अंतिमा की बड़ी बहन सुरभि सिंह इस वक्त लखनऊ में पुलिस सिपाही की ट्रेनिंग कर रही है। वर्ष परीक्षा 2013 उसका चयन हुआ था। अंतिमा ने भी अपनी बड़ी बहन की राह पकड़ी वर्ष 2018 में पहली बार पुलिस भर्ती परीक्षा दी। इसमें रनिंग न क्वालीफाई करने से वह बाहर हो गई। ऐसे वक्त अंतिमा के लिए काफी भारी रहे। पर माता-पिता ने बेटी के हौसले को बढ़ाया। और अंतिमा ने भी इस असफलता को एक चुनौती के रुप में लिए और अगली परीक्षा की तैयारी में जुट गई। अपनी कमियों को दूर करने के लिए जी-जान से मेहनत करने लगी। फिजिकल की वजह से बाहर हुई तो खूब अभ्यास करने की ठानी। वर्ष 2019 में दुबारा परीक्षा दिया। और उसकी मेहनत का परिणाम जब वर्ष 2020 के मार्च महीने की 2 तारीख को आया तो पता चला कि अंतिमा अंतिम नहीं महिला वर्ग में पूरे प्रदेश में प्रथम आई है। उसने इतिहास रच दिया है। पूरे गांव में खुशी की लहर दौड़ गई।
अब अंतिमा न सिर्फ अपने गांव बल्कि आसपास क्षेत्र में पढ़-लिखकर कैरियर बनाने की इच्छुक बेटियों के लिए रोल माडल बनकर उभरी है। इस सफलता से गांव के अधिकतर लोग लड़कियों की पढ़ाई लिखाई से कतराते हैं अब उनकी भी हिम्मत बढ़ेगी।
अंतिमा के पिता सुनील सिंह एमकाम तक पढ़े हैं, रिसर्च स्कालर थे। पर अब वह किसान है और खेतीबाड़ी करते हैं। मां अनीता सिंह इंटरमीडिएट तक पढ़ी हैं। वह गांव प्रधान भी रही हैं। इन दोनों के दो बेटे व दो बेटियां हैं। बड़ी सुरभि पुलिस परीक्षा पास कर लखनऊ में प्रशिक्षण प्राप्त कर रही हैं। एक बेटा अमन सिंह बीटेक की पढ़ाई कर रहा है, जबकि छोटा अभिनव सिंह हाईस्कूल में अध्ययनरत है।
हरदोई शहर के मोहल्ला बोर्डिंग हाउस में किराए के मकान में रहकर बच्चों को पढ़ाने वाले पिता सुनील सिंह का कहना है कि वे हमेशा गांववालों को कहते हैं कि बेटा व बेटी दोनों को पढ़ाएं। उनकी दोनों बेटियों ने पुलिस में चयनित होकर उनकी मेहनत को साकार कर दिया है। न सिर्फ अब वे अपने पैरों पर खड़ी हुई हैं, बल्कि देश की भी सेवा कर सकेंगी। बेटियां बोझ नहीं होती हैं, बल्कि सही पालन, पोषण व मौका मिलने पर वे भी देश व समाज की जिम्मेदारियों का बोझ अपने कंधे पर उठा सकती हैं।
मां अनीता सिंह का कहना है कि बेटे व बेटियों में अंतर नहीं करना चाहिए। दोनों को समान रूप से पढ़ाएं। बेटियां भी किसी मायने में कम नहीं हैं।