लखनऊ में 125 साल पुराने टुंडे कबाब की दुकान के मालिक हाजी रईस अहमद का निधन हो गया है। उनके निधन के बाद एक बार फिर टुंडे कबाब चर्चा में आ गए हैॆं। हम आपको टुंडे कबाब की कहानी आज बताने जा रहे हैं। आखिर क्यों 100 सालों से खाने के शौकीन इनको पसंद कर रहे हैं।
इस वजह से रहे सुर्खियों में… उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ का नाम सुनते ही सबसे पहले आपके दिमाग में दो चीजें आती होंगी। लखनऊ की बोलचाल और लखनऊ का खानपान। लखनऊ के खानपान में भी सबसे प्रसिद्ध टुंडे कबाब का याद हमारे जहन में हो उठता है। और आए भी क्यों नहीं?
इनके लाजवाब स्वाद की महक न सिर्फ देश में बल्कि विदेशों तक में फैली हुई है। देशी और विदेशी पर्यटक जो भी यहां आते हैं, पता पूछते-पूछते अकबरी गेट की इस दुकान पर एक बार पहुंच ही जाते हैं। 117 सालों में अपनी शुरूआत के बाद यह दुकान पहली बार जून में एक दिन बंद थी। इसकी वजह थी गोश्त की सप्लाई नहीं हो पाना। अगले दिन जब दुकान खुली तो टुंडे कबाब के दिवानों की भीड़ यहां टूट पड़ी, यह जानने के लिए कि सब खैरियत तो है ना। अब तो आप समझ ही गए होंगे की कितना मशहूर है लखनऊ का ये व्यंजन।
टुंडे कबाब की दुकान बंद होने की खबर देशभर की मीडिया में भी चर्चा में रही थी। लोग हैरत में थे कि एक पकवान की दुकान बंद होने की खबर मीडिया में भी इतनी चर्चा कैसे पा गई। असल में ये असर उस स्वाद का था जिसके सामने देश भर के बड़े बड़े खानसामे और फाइव स्टार होटलों के पकवान भी फीके हैं। आइए हम आपको रूबरू कराते हैं लखनऊ के उस टुंडे कबाब से…
क्या है टुंडे कबाब की कहानी
लखनऊ के टुंडे कबाब की कहानी 1905 से शुरू होती है, जब यहां पहली बार अकबरी गेट में एक छोटी सी दुकान खोली गई। वैसे तो टुंडे कबाब का किस्सा तो इससे भी एक सदी पुराना है। दुकान के मालिक 70 वर्षीय रईस अहमद बताते हैं कि उनके पूर्वज भोपाल के नवाब के यहां बावर्ची हुआ करते थे।
लखनऊ के टुंडे कबाब की कहानी 1905 से शुरू होती है, जब यहां पहली बार अकबरी गेट में एक छोटी सी दुकान खोली गई। वैसे तो टुंडे कबाब का किस्सा तो इससे भी एक सदी पुराना है। दुकान के मालिक 70 वर्षीय रईस अहमद बताते हैं कि उनके पूर्वज भोपाल के नवाब के यहां बावर्ची हुआ करते थे।
भोपाल के नवाब खाने पीने के बहुत शौकीन थे। बढ़ती उम्र के साथ मुंह में दांत नहीं रहे तो उन्हें खाने पीने में दिक्कत होने लगी। फिर भी उनकी और उनकी बेगम की खाने पीने की आदत नहीं गई। इस वजह से उनके लिए एक ऐसी कबाब बनाने की सोची गई जिसे आसानी से खाया जा सके। ऐसे शुरू हुआ इस कबाब का सफर।
इसके लिए गोश्त को बारीक पीसा गया और उसमें पपीते मिलाकर ऐसा कबाब बनाया गया जो मुंह में डालते ही घुल जाए। स्वाद के लिए उसमें चुन-चुन कर तरह-तरह के मसाले मिलाए गए। इसके बाद हाजी परिवार भोपाल से लखनऊ आ गया। यहाँ पर उन्होंने अकबरी गेट के पास गली में छोटी सी दुकान शुरू की।
कबाब से टुंडे कबाब कैसे पड़ा नाम
इन कबाबों के टुंडे नाम पड़ने के पीछे भी एक दिलचस्प किस्सा है। असल में टुंडे उसे कहते है जिसका हाथ न हो। रईस अहमद के पिता हाजी मुराद अली पतंग उड़ाने के बहुत शौकीन हुआ करते थे। एक बार पतंग के चक्कर में ही उनका हाथ टूट गया। इसके कारण उन्हें बाद में हाथ कटवाना पड़ा। अब पतंग नहीं उड़ा सकते थे इसलिए मुराद अली पिता के साथ दुकान पर ही बैठने लगे। उनके हाथ न होने की वजह से जो भी यहां कबाब खाने आते वो टुंडे के कबाब बोलने लगे और यहीं से नाम पड़ गया टुंडे कबाब।
इन कबाबों के टुंडे नाम पड़ने के पीछे भी एक दिलचस्प किस्सा है। असल में टुंडे उसे कहते है जिसका हाथ न हो। रईस अहमद के पिता हाजी मुराद अली पतंग उड़ाने के बहुत शौकीन हुआ करते थे। एक बार पतंग के चक्कर में ही उनका हाथ टूट गया। इसके कारण उन्हें बाद में हाथ कटवाना पड़ा। अब पतंग नहीं उड़ा सकते थे इसलिए मुराद अली पिता के साथ दुकान पर ही बैठने लगे। उनके हाथ न होने की वजह से जो भी यहां कबाब खाने आते वो टुंडे के कबाब बोलने लगे और यहीं से नाम पड़ गया टुंडे कबाब।
मसाले का राज आज भी एक राज ही है
आपको जानकर हैरानी होगी की दुकान चलाने वाले रईस अहमद के परिवार के अलावा दूसरा कोई भी इसे बनाने की खास विधि और इसमें मिलाए जाने वाले मसालों के बारे में नहीं जानता है। हाजी परिवार ने इस राज को आज तक किसी के भी साथ साझा नहीं किया है। यहां तक की अपने परिवार की बेटियों को भी नहीं। बस यही कारण है कि टुंडे कबाब का जो स्वाद यहां मिलता है, वो पूरे देश में कहीं और नहीं मिलता।
आपको जानकर हैरानी होगी की दुकान चलाने वाले रईस अहमद के परिवार के अलावा दूसरा कोई भी इसे बनाने की खास विधि और इसमें मिलाए जाने वाले मसालों के बारे में नहीं जानता है। हाजी परिवार ने इस राज को आज तक किसी के भी साथ साझा नहीं किया है। यहां तक की अपने परिवार की बेटियों को भी नहीं। बस यही कारण है कि टुंडे कबाब का जो स्वाद यहां मिलता है, वो पूरे देश में कहीं और नहीं मिलता।
टुंडे कबाब की रेसिपी
हाजी रईस के अनुसार कबाब में सौ से भी ज्यादा मसाले मिलाए जाते हैं। आज भी उन्हीं मसालों का प्रयोग किया जाता है जो की सौ साल पहले मिलाए जाते थे। उन्हें बदलने की जरुरत ही नहीं पड़ी। कोई टुंडे कबाब की रेसिपी जान न ले इसलिए मसालों को अलग अलग दुकानों से खरीदा जाता है। फिर घर में ही एक बंद कमरे में उन्हें कूट छानकर तैयार करते हैं। इन मसालों में से कुछ तो ईरान और दूसरे देशों से भी मंगाए जाते हैं।
हाजी रईस के अनुसार कबाब में सौ से भी ज्यादा मसाले मिलाए जाते हैं। आज भी उन्हीं मसालों का प्रयोग किया जाता है जो की सौ साल पहले मिलाए जाते थे। उन्हें बदलने की जरुरत ही नहीं पड़ी। कोई टुंडे कबाब की रेसिपी जान न ले इसलिए मसालों को अलग अलग दुकानों से खरीदा जाता है। फिर घर में ही एक बंद कमरे में उन्हें कूट छानकर तैयार करते हैं। इन मसालों में से कुछ तो ईरान और दूसरे देशों से भी मंगाए जाते हैं।
कभी एक पैसे में मिला करते थे दस कबाब
आज इन टुंडे कबाबों की प्रसिद्धी पूरी देश-दुनिया में है। जब दुकान शुरू हुई थी तो एक पैसे में दस कबाब मिलते थे धीरे-धीरे इसकी कीमतें बढ़नती रहीं। अब टुंडे कबाब की दुुुकान में आपको 60 रूपए में बीफ के 4 कबाब मिलते हैं। इसके साथ पराठा अलग से लेना पड़ता है। वहीं मटन के 120 रुपए में 4 मिलते हैं। टुंडे कबाब के अलावा इस दुकान पर रुमाली रोटी,अवधि खीर,चिकन सीक कबाब और ब्लैक बफैलो कबाब, रोस्टेड चिकन,चिकन टंगड़ी भी यहां पर मिलता है।
आज इन टुंडे कबाबों की प्रसिद्धी पूरी देश-दुनिया में है। जब दुकान शुरू हुई थी तो एक पैसे में दस कबाब मिलते थे धीरे-धीरे इसकी कीमतें बढ़नती रहीं। अब टुंडे कबाब की दुुुकान में आपको 60 रूपए में बीफ के 4 कबाब मिलते हैं। इसके साथ पराठा अलग से लेना पड़ता है। वहीं मटन के 120 रुपए में 4 मिलते हैं। टुंडे कबाब के अलावा इस दुकान पर रुमाली रोटी,अवधि खीर,चिकन सीक कबाब और ब्लैक बफैलो कबाब, रोस्टेड चिकन,चिकन टंगड़ी भी यहां पर मिलता है।
टुंडे कबाब की पहुंच बॉलीवुड तक
लखनऊ के प्रसिद्ध टुंडे कबाब की पहुंच बॉलीवुड तक है। इस स्वाद का ही असर है कि शाहरुख खान, अनुपम खेर, आशा भौंसले जैसे और सुरेश रैना जैसे बड़े बड़े नाम टुंडे कबाब खाने यहां आ चुके हैं। बॉलीवुड के सुपर स्टार शाहरुख खान अक्सर टुंडे कबाब बनाने वाली इस टीम को मुंबई स्थित अपने घर मन्नत में विभिन्न आयोजनों में बुलाते हैं। महान अभिनेता दिलीप कुमार भी इनके बड़े प्रशंसकों में से एक थे।
लखनऊ के प्रसिद्ध टुंडे कबाब की पहुंच बॉलीवुड तक है। इस स्वाद का ही असर है कि शाहरुख खान, अनुपम खेर, आशा भौंसले जैसे और सुरेश रैना जैसे बड़े बड़े नाम टुंडे कबाब खाने यहां आ चुके हैं। बॉलीवुड के सुपर स्टार शाहरुख खान अक्सर टुंडे कबाब बनाने वाली इस टीम को मुंबई स्थित अपने घर मन्नत में विभिन्न आयोजनों में बुलाते हैं। महान अभिनेता दिलीप कुमार भी इनके बड़े प्रशंसकों में से एक थे।