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कल्याण सिंह के जीवन में इन चार घटनाओं की है बड़ी अहमियत, जानकर हैरान रह जाएंगे

– कल्याण सिंह का आज होगा नरौरा में गंगा किनारे अंतिम संस्कार

लखनऊAug 23, 2021 / 09:57 am

Sanjay Kumar Srivastava

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लखनऊ. यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने दुनिया तो छोड़ दी पर राजनीति में हमेशा उनको याद किया जाएगा। कल्याण सिंह पर जब भी चर्चा होगी तो उनके राजनीतिक जीवन के इन चार अध्यायों पर हमेशा बड़ी बेबाकी से बात होगी। यूपी सीएम, बाबरी मस्जिद प्रकरण, कुसुम राय प्रसंग, और श्रीप्रकाश शुक्ल।
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एकमत से बने सीएम :- कल्याण सिंह पहली बार अतरौली से साल 1967 में जनसंघ के टिकट पर चुनाव जीते। साल 1980 तक लगातार इसी सीट का प्रतिनिधित्व करते रहे। फिर जनसंघ का जनता पार्टी में विलय हो गया। और साल 1977 में यूपी में जब जनता पार्टी की सरकार बनी तो स्वास्थ्य मंत्री बनाया गया। चुनाव 1980 में कल्याण सिंह हार गए। साल 1980 में जब भाजपा का गठन हुआ तो कल्याण सिंह को पार्टी का प्रदेश महामंत्री बनाया गया। अयोध्या आंदोलन में उन्होंने गिरफ्तारी देने के साथ ही कार्यकर्ताओं में नया जोश भरने का काम किया था। अयोध्या आंदोलन में ही उनकी छवि राम-भक्त की हो गई थी। वे पूरे देश में लोकप्रिय हो गए थे। वर्ष 1991 में जब यूपी में पहली बार भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार बनी तो मुख्यमंत्री कल्याण सिंह को बनाया गया।
बाबरी विध्वंश की कहानी :- देश में एक तरफ मण्डल आयोग तो एक तरफ राम-जन्मभूमि के लिए आंदोलन चल रहा था। उस वक्त यूपी सीएम मुलायम सिंह यादव थे। मुख्यमंत्री रहते हुए 30 अक्टूबर, 1990 को अयोध्या में उन्होंने कारसेवकों पर गोली चलाने का आदेश दे दिया था। इस गोलीबारी में कई कारसेवकों की मौत हो गई थी। भाजपा ने तब कल्याण सिंह को मुकाबला करने की जिम्मेदारी सौंपी। कल्याण सिंह ने इसे मुद्दा बना दिया। जातिगत समीकरणों से भी पार्टी को फायदा मिला। नतीजा यह हुआ कि कल्याण सिंह 1991 में पूर्ण बहुमत की सरकार बना ली। मुख्यमंत्री बनते ही कल्याण सिंह अपने मंत्रिमंडल सहयोगियों के साथ अयोध्या दौरे पर पहुंचे और राम मंदिर निर्माण की शपथ ली। फिर वह मौका आया जब कल्याण सिंह के कार्यकाल 6 दिसंबर 1992 को कार सेवकों ने अयोध्या में बाबरी मस्जिद ढहा दी। मस्जिद गिरते ही कल्याण सिंह ने नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए सीएम पद से इस्तीफा दे दिया। इस्तीफा देने के बाद कल्याण सिंह ने कहा, ‘बाबरी मस्जिद विध्वंस भगवान की मर्जी थी, मुझे इसका कोई अफसोस नहीं है।
कुसुम राय बनी नाराजगी की वजह :- बताया जाता है कि कल्याण सिंह की पार्टी की एक नेता कुसुम राय थीं। वह समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय क्रांति पार्टी की मिलीजुली सरकार में कैबिनेट मंत्री थीं। वर्ष 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बनने में कामयाब रहे। इसके बाद भाजपा में कल्याण सिंह को हटाने के लिए वाजपेयी गुट के नेता एक हो गए। राजनीतिक गलियारों में कल्याण और वाजपेयी की कड़वाहट जगजाहिर हो गई थी। मामला के पीछे की वजह कुसुम राय थीं। लखनऊ से पार्षद रहते हुए कुसुम राय कल्याण सिंह की सरकार में काफी पावरफुल मानी जाती थीं। इसके चलते पार्टी के तमाम नेता नाराज थे। पर कल्याण सिंह किसी की भी परवाह नहीं करते थे। जिस वजह से सभी पार्टी नेता कल्याण सिंह को सीएम पद से हटाने के लिए एकजुट हो गए। काफी दबाव के बाद कल्याण सिंह ने मुख्यमंत्री पद छोड़ दिया। पर कल्याण सिंह इसके बाद अटल बिहारी वाजपेयी को लेकर सहज नहीं रह पाए।
श्रीप्रकाश शुक्ल ने सुपारी ली थी :- एक वक्त श्रीप्रकाश शुक्ल आतंक का पर्याय था। कहा जाता है कि उसने पूर्व सीएम कल्याण सिंह को मारने की सुपारी ली थी। बस फिर क्या था कल्याण सिंह को एसटीएफ (स्पेशल टॉस्क फोर्स) गठन करना पड़ा। सितंबर 1998 को एसटीएफ ने इस डॉन को मुठभेड़ में मार गिराया। वर्ष 1993 में बहन पर छींटाकशी करने वाले को गोली मार कर श्रीप्रकाश बिहार के मोकामा में सूरजभान गैंग में शामिल होकर कुख्यात माफिया बन जाता है। श्रीप्रकाश इतना मनबढ़ था कि कितने ही राजनेताओं की उसने हत्या की थी। श्रीप्रकाश देश का पहला बदमाश था जिसने हत्या के लिए एके-47 राइफल का प्रयोग किया था।

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