एग्जिट पोल में हाथी ने दिया ‘अंडा’
उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में से पार्टी को एक भी सीट मिलती नहीं दिख रही है। पिछले चुनाव समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन में लड़ने वाली बसपा ने दस सीटें जीती थीं। लेकिन इस बार पार्टी इंडिया गठबंधन का हिस्सा नहीं बनीं और अकेले अपने दम पर चुनाव लड़ा। अब एग्जिट पोल में हाथी ने ‘अंडा’ दिया है। बसपा के जीरो पर पहुंचने की आशंका ने मायावती और उनकी पार्टी के राजनीति भविष्य पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं। हालांकि ये पहली बार नहीं होगा जब बसपा को जीरो मिलेगा। इससे पहले साल 2014 के चुनाव में भी पार्टी कोई सीट नहीं जीत सकी थी।अपनी राजनीतिक जमीन गवां रही हैं मायावती?
लोकसभा चुनाव में जीरों पर सिमटती दिख रही बसपा के बाद ये सवाल उठ रहा है कि क्या मायावती की पकड़ अब दलीत वोटों पर कमजोर हो रही है? क्या दलित वोट अब बिखर गया है? वहीं, चुनावी सर्वेक्षण रिपोर्ट इस बात की तरफ इशारा कर रही हैं कि मायावती अपनी दलित राजनीति कहीं न कहीं खो रही हैं। यूपी की राजनीति में एक वक्त था जब मायावती जिधर इशारा कर दें, दलित वोटर उधर हो जाता था। बसपा को एकमात्र ऐसी पार्टी माना जाता था जो अपने कोर वोट बैंक को जिधर चाहे उधर ट्रांसफर कर देती थी। लेकिन अब पार्टी के वोट बैंक के बीजेपी और इंडिया गठबंधन की तरफ खिसक जाने के संकेत मिल रहे हैं।
2014 में भी शून्य पर निपटी थी बसपा
2014 लोकसभा चुनाव में बसपा अपना खाता नहीं खोल पाई थी। 10 साल बाद एक बार फिर बसपा की यही स्थिती बनती दिख रही है। साल 2019 के लोकसभा चुनाव में बसपा ने सपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था। लोकसभा चुनाव में अखिलेश यादव ने मायावती के साथ चुनावी गठबंधन किया था। इसमें सपा को पांच और बसपा को 10 सीटें मिली थीं। सपा ने 18 और बसपा ने 19.3 फीसदी वोट हासिल किए थे। इस बार समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस के साथ मिलकर इंडिया गठबंधन के बैनर तले चुनाव लड़ा है। ये भी पढ़ें: लोकसभा चुनाव रिजल्ट से पहले योगी सरकार का बड़ा एक्शन, पान मसाला और तंबाकू हुआ बैन
बीच चुनाव बदली रणनीति?
मायावती के इंडिया गठबंधन में शामिल होने को लेकर चुनाव से पहले रिपोर्टें आ रहीं थीं। राजनीतिक विश्लेषक दावा कर रहे थे कि यूपी में बसपा इंडिया गठबंधन में शामिल हो सकती है। कांग्रेस और बसपा नेताओं के बीच सीधी वार्ता की रिपोर्टें भी आईं, लेकिन अंत में मायावती ने अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया। चुनाव के शुरुआती दौर में बसपा आक्रामक भी दिखी। मायावती के राजनीतिक उत्तराधिकारी माने जा रहे आकाश आनंद मीडिया की सुर्खियों में आए, कई साक्षात्कारों में उन्होंने सत्ताधारी बीजेपी के प्रति आक्रामक तेवर दिखाये। आकाश आनंद को सुर्खियां मिलनी शुरू ही हुईं थीं कि मायावती ने अचानक उन्हें पार्टी की जिम्मेदारियों से अलग कर दिया। आकाश आनंद भी शांत हो गए। मायावती के इस फैसले पर कई सवाल भी उठे। कहा जाने लगा कि पार्टी पूरे दमखम से चुनाव लड़ना नहीं चाहती है। अब ये मायावती की रणनीति भूल है या राजनीतिक दांव, ये तो आगे पता चलेगा, लेकिन फिलहाल बसपा एक बार फिर जीरो पर सिमटती दिख रही है।