वसंत पंचमी से हो जाती है शुरुआत
अब अगर बात की जाए ब्रज की होली की तो उसका आनंद कुछ अलग ही है। यहां वसंत पंचमी से ही होली की शुरुआत हो जाती है, लेकिन होली से 10 दिन पहले से विशेष आयोजन होते हैं। पूरे ब्रज में 10 दिनों तक गुलाल और रंगों की बरसात होती है। मंदिरों में फाग गायन शुरू हो जाता है। इसके अलावा बरसाने की होली तो विश्व प्रसिद्घ है। होली पर रंग-गुलाल से सराबोर होने के अलावा बरसाने की हुरियारिनों यानी महिलाओं के प्रेम में पगे यानी पुरुष लठ खाने के लिए यहां आते हैं। इसके अलावा देश-विदेश से मेहमान भी होली उत्सव का आनंद लेने यहां पहुंचते हैं।
अब अगर बात की जाए ब्रज की होली की तो उसका आनंद कुछ अलग ही है। यहां वसंत पंचमी से ही होली की शुरुआत हो जाती है, लेकिन होली से 10 दिन पहले से विशेष आयोजन होते हैं। पूरे ब्रज में 10 दिनों तक गुलाल और रंगों की बरसात होती है। मंदिरों में फाग गायन शुरू हो जाता है। इसके अलावा बरसाने की होली तो विश्व प्रसिद्घ है। होली पर रंग-गुलाल से सराबोर होने के अलावा बरसाने की हुरियारिनों यानी महिलाओं के प्रेम में पगे यानी पुरुष लठ खाने के लिए यहां आते हैं। इसके अलावा देश-विदेश से मेहमान भी होली उत्सव का आनंद लेने यहां पहुंचते हैं।
द्वापर युग से शुरू हुई परंपरा
लट्ठमार होली का इतिहास और मान्यता के मुताबिक ब्रज में होने वाली होली को श्री कृष्ण और राधा रानी के प्रेम से जोड़कर देखा जाता है। मान्यता है कि द्वापर युग में श्री कृष्ण होली खेलना काफी पसंद करते थे। होली के दिन सर्वप्रथम बरसाने में लड्डू की होली होती थी। इसके बाद श्री कृष्ण अपने ग्वाल बाल के साथ नंद गांव जाते थे और राधा रानी व गोपियों के साथ लट्ठमार होली खेली जाती थी। बरसाने में होली खेलने वाली गोपियों को हुरियारिन और ग्वालों को हुरियारे कहा जाता है।
लट्ठमार होली का इतिहास और मान्यता के मुताबिक ब्रज में होने वाली होली को श्री कृष्ण और राधा रानी के प्रेम से जोड़कर देखा जाता है। मान्यता है कि द्वापर युग में श्री कृष्ण होली खेलना काफी पसंद करते थे। होली के दिन सर्वप्रथम बरसाने में लड्डू की होली होती थी। इसके बाद श्री कृष्ण अपने ग्वाल बाल के साथ नंद गांव जाते थे और राधा रानी व गोपियों के साथ लट्ठमार होली खेली जाती थी। बरसाने में होली खेलने वाली गोपियों को हुरियारिन और ग्वालों को हुरियारे कहा जाता है।
श्रीकृष्ण के साथ लट्ठमार होली खेलती थीं राधा रानी
बरसाना की लड्डू होली के बाद नंद गांव से श्री कृष्ण अपने साथियों के साथ बरसाना में आते थे और राधा रानी व गोपियों से हंसी ठिठोली कर उन्हें छेड़ते थे। ऐसे में राधा रानी व अन्य गोपियां भी श्री कृष्ण और उनके ग्वालबालों पर लाठियां बरसाती थीं और उसी दिन से ही ब्रज में लट्ठमार होली शुरू हो गई।
बरसाना की लड्डू होली के बाद नंद गांव से श्री कृष्ण अपने साथियों के साथ बरसाना में आते थे और राधा रानी व गोपियों से हंसी ठिठोली कर उन्हें छेड़ते थे। ऐसे में राधा रानी व अन्य गोपियां भी श्री कृष्ण और उनके ग्वालबालों पर लाठियां बरसाती थीं और उसी दिन से ही ब्रज में लट्ठमार होली शुरू हो गई।
ब्रज की मिट्टी में घाव भरने की शक्ति
बरसाना में खेली जाने वाली लट्ठमार होली में गोपियां नंद गांव के लोगों पर लट्ठ बरसाती हैं। ग्वालबाल डंडे और ढाल से अपना बचाव करते हैं। वहीं बताया जाता है कि गोपियों द्वारा बरसाए गए लट्ठों से ग्वालों को चोट नहीं लगती और अगर लग भी जाती है तो चोट पर ब्रज की मिट्टी लगाई जाती है। कहा जाता है कि ब्रज की मिट्टी में आज भी इतनी शक्ति है कि उसे लगाने से घाव भर जाता है।
बरसाना में खेली जाने वाली लट्ठमार होली में गोपियां नंद गांव के लोगों पर लट्ठ बरसाती हैं। ग्वालबाल डंडे और ढाल से अपना बचाव करते हैं। वहीं बताया जाता है कि गोपियों द्वारा बरसाए गए लट्ठों से ग्वालों को चोट नहीं लगती और अगर लग भी जाती है तो चोट पर ब्रज की मिट्टी लगाई जाती है। कहा जाता है कि ब्रज की मिट्टी में आज भी इतनी शक्ति है कि उसे लगाने से घाव भर जाता है।
केमिकल रंगों का नहीं होता इस्तेमाल
ब्रज में खेली जाने वाली होली की खासियत यह भी है कि यहां पर केमिकल के रंगों का प्रयोग नहीं किया जाता है। रंगों से किसी को कोई नुकसान नहीं हो, इसके लिए यहां पर टेसू के फूलों से प्राकृतिक रंग बनाए जाते हैं। इन्हीं रंगों का प्रयोग ब्रज की होली में किया जाता है।
ब्रज में खेली जाने वाली होली की खासियत यह भी है कि यहां पर केमिकल के रंगों का प्रयोग नहीं किया जाता है। रंगों से किसी को कोई नुकसान नहीं हो, इसके लिए यहां पर टेसू के फूलों से प्राकृतिक रंग बनाए जाते हैं। इन्हीं रंगों का प्रयोग ब्रज की होली में किया जाता है।
वसंत पंचमी के साथ ही ब्रज में होली शुरू हो चुकी है। बरसाना सहित मथुरा, वृंदावन, नंदगांव, रावल सहित पूरे ब्रज में करीब 10 दिनों तक मनाई जाने वाली रंग-गुलाल की होली का पूरा शेड्यूल इस प्रकार है।
ब्रज में कब-कहां है होली
फाग आमंत्रण यानि नंदगांव की होली- 27 फरवरी
बरसाना की लड्डू होली- 27 फरवरी
संकीर्तन समाज रात्रि- 27 फरवरी
बरसाना की लठामार होली- 28 फरवरी
नंदगांव लठामार होली- 1 मार्च
रंग भरनी एकादशी वृंदावन- 3 मार्च
श्रीकृष्ण जन्मभूमि होली मथुरा- 3 मार्च
छड़ीमार होली गोकुल- 4 मार्च
होलिका दहन- 6 मार्च
होली द्वारिकाधीश मथुरा- 7 मार्च
धुलेंडी- 7 मार्च
दाऊजी हुरंगा बलदेव- 8 मार्च
रावल हुरंगा- 8 मार्च
नंदगांव हुरंगा- 8 मार्च
फाग आमंत्रण यानि नंदगांव की होली- 27 फरवरी
बरसाना की लड्डू होली- 27 फरवरी
संकीर्तन समाज रात्रि- 27 फरवरी
बरसाना की लठामार होली- 28 फरवरी
नंदगांव लठामार होली- 1 मार्च
रंग भरनी एकादशी वृंदावन- 3 मार्च
श्रीकृष्ण जन्मभूमि होली मथुरा- 3 मार्च
छड़ीमार होली गोकुल- 4 मार्च
होलिका दहन- 6 मार्च
होली द्वारिकाधीश मथुरा- 7 मार्च
धुलेंडी- 7 मार्च
दाऊजी हुरंगा बलदेव- 8 मार्च
रावल हुरंगा- 8 मार्च
नंदगांव हुरंगा- 8 मार्च