दरअसल, साल 1922 में चौरी चौरा कांड के बाद गांधी जी ने असहयोग आंदोलन वापस लेने का फैसला किया तो कई युवाओं को उनके इस कदम से निराशा हुई। इसके बाद देश के युवाओं ने हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन ने राह दिखाने का काम किया था। इस संगठन की स्थापना शचीन्द्र नाथ सान्याल ने की थी। काशी में पैदा हुए सान्याल अपने समय के सम्मानित क्रांतिकारियों में एक थे।
शादी ना करने की सलाह मिली
1924 में भगत सिंह ने भी इसकी सदस्यता ग्रहण की थी। इसी के माध्यम से उनकी मुलाकात चंद्रशेखर आजाद, राजगुरु, सुखदेव, राम प्रसाद बिस्मिल आदि क्रांतिकारियों से हुई थी। क्रांतिकारियों के गुरु बनारस के शचींद्र नाथ सान्याल ने भगत सिंह को शादी न करने की सलाह दी थी।
1924 में भगत सिंह ने भी इसकी सदस्यता ग्रहण की थी। इसी के माध्यम से उनकी मुलाकात चंद्रशेखर आजाद, राजगुरु, सुखदेव, राम प्रसाद बिस्मिल आदि क्रांतिकारियों से हुई थी। क्रांतिकारियों के गुरु बनारस के शचींद्र नाथ सान्याल ने भगत सिंह को शादी न करने की सलाह दी थी।
काशी हिंदू विश्वविद्यालय, बालाजी घाट, रामकुंड, काशी विद्यापीठ और बेनिया अखाड़े के आसपास क्रांतिकारियों की गुप्त बैठकें होती थीं, जहां तीनों क्रांतिकारियों की आपस में मुलाकात होती थीं। राजगुरु जन्मजात मराठा थे, मगर उन्हे पहचान बनारस ने ही सबसे पहले दी। उन्होंने कर्मभूमि बनारस को बनाया। क्रांतिकारी रघुनाथ या राजगुरु महाराष्ट्र से स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद संस्कृत पढ़ने बनारस आ गए।
28 सितम्बर 1907 को देश में एक वीर का जन्म हुआ, जिसका नाम था भगत सिंह। उस समय उनके चाचा अजीत सिंह और श्वान सिंह भारत की आजादी में अपना सहयोग दे रहे थे। ये दोनों करतार सिंह सराभा द्वारा संचालित गदर पाटी के सदस्य थे। भगत सिंह पर इन दोनों का गहरा प्रभाव पड़ा था। इसलिए ये बचपन से ही अंग्रेजों से नफरत करने लगे थे।
जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद भगत सिंह छोड़ दी पढ़ाई
13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग हत्याकांड ने भगत सिंह के मन पर बड़ा गहरा प्रभाव डाला। लाहौर के नेशनल कॉलेज़ की पढ़ाई छोड़कर भगत सिंह ने 1920 में भगत सिंह महात्मा गांधी द्वारा चलाए जा रहे अहिंसा आंदोलन में भाग लेने लगे, जिसमें गांधी जी विदेशी समानों का बहिष्कार कर रहे थे।
13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग हत्याकांड ने भगत सिंह के मन पर बड़ा गहरा प्रभाव डाला। लाहौर के नेशनल कॉलेज़ की पढ़ाई छोड़कर भगत सिंह ने 1920 में भगत सिंह महात्मा गांधी द्वारा चलाए जा रहे अहिंसा आंदोलन में भाग लेने लगे, जिसमें गांधी जी विदेशी समानों का बहिष्कार कर रहे थे।
14 साल की उम्र में भगत सिंह ने स्कूल की किताबें और कपड़ें जला दिए थे। साल 1921 में महात्मा गांधी ने चौरी- चौरा हत्याकांड में जब किसानों का साथ नहीं दिया तो इस घटना का भगत सिंह पर गहरा प्रभाव पड़ा।भगत सिंह ने अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन शुरू कर दिया। 9 अगस्त, 1925 को शाहजहांपुर से लखनऊ के लिए चली 8 नंबर डाउन पैसेंजर से काकोरी नामक छोटे से स्टेशन पर सरकारी खजाने को लूट लिया।
भगत सिंह ने अपने देश की आजादी के लिए कई योगदान दिए हैं। यहां तक की उन्होंने शादी के लिए मना करते हुए यह कह दिया कि ‘अगर आजादी से पहले मैं शादी करूंगा तो मेरी दुल्हन मौत होगी। भगत सिंह भारत के एक प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी थे। चन्द्रशेखर आजाद व पार्टी के अन्य सदस्यों के साथ मिलकर इन्होंने देश की आजादी के लिए अभूतपूर्व साहस के साथ शक्तिशाली ब्रिटिश सरकार का मुकाबला किया।
‘नौजवान भारत सभा’ के सेक्रेटरी थे भगत सिंह
साल 1926 में ‘नौजवान भारत सभा’ भगत सिंह को सेक्रेटरी बना दिया गया। इसके बाद सन् 1928 में उन्होने हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA) को ज्वाइन किया। ये चन्द्रशेखर आजाद ने बनाया था और पूरी पार्टी ने जुट कर 30 अक्टूबर 1928 को भारत में आए साइमन कमीशन का विरोध किया। इस विरोध में लाला लाजपत राय भी शामिल थे। लेकिन अंग्रेजों की लाठीचार्ज में लाला लाजपत राय की मृत्य हो गई और इसने भगत सिंह को हिला कर रख दिया।
साल 1926 में ‘नौजवान भारत सभा’ भगत सिंह को सेक्रेटरी बना दिया गया। इसके बाद सन् 1928 में उन्होने हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA) को ज्वाइन किया। ये चन्द्रशेखर आजाद ने बनाया था और पूरी पार्टी ने जुट कर 30 अक्टूबर 1928 को भारत में आए साइमन कमीशन का विरोध किया। इस विरोध में लाला लाजपत राय भी शामिल थे। लेकिन अंग्रेजों की लाठीचार्ज में लाला लाजपत राय की मृत्य हो गई और इसने भगत सिंह को हिला कर रख दिया।
भगत सिंह ने ठान लिया कि अंग्रेजों को इसका जवाब देना होगा। 8 अप्रैल 1929 को उन्होंने साथी क्रांतिकारी बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर ब्रिटिश सरकार की अस्सेम्बली में बम विस्फोट कर दिया। इस विस्फोट का मकसद लोगों तक आजादी की लड़ाई के लिए आवाज पहुंचाना था। इस विस्फोट के बाद भगत सिंह को जेल हो गई। यहां से भी उन्होंने आजादी के लिए लड़ाई छोड़ी नहीं बल्कि और तेज कर दी। अखबारों के जरिए भगत लगातार अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ लिखते रहे।
23 मार्च 1931 को भगत सिंह को दे दी गई थी फांसी
उन्होंने 23 वर्ष की छोटी-सी आयु में फ्रांस, आयरलैंड और रूस की क्रांति का विषद अध्ययन किया था। हिन्दी, उर्दू, अंग्रेजी, संस्कृत, पंजाबी, बंगला और आयरिश भाषा के मर्मज्ञ चिंतक और विचारक भगतसिंह भारत में समाजवाद के पहले व्याख्याता थे। 23 मार्च 1931 को भगत सिंह तथा इनके दो साथियों सुखदेव व राजगुरु को फांसी दे दी गई। जबकि उन्हें 24 मार्च को फांसी देने का समय निर्धारित था।
उन्होंने 23 वर्ष की छोटी-सी आयु में फ्रांस, आयरलैंड और रूस की क्रांति का विषद अध्ययन किया था। हिन्दी, उर्दू, अंग्रेजी, संस्कृत, पंजाबी, बंगला और आयरिश भाषा के मर्मज्ञ चिंतक और विचारक भगतसिंह भारत में समाजवाद के पहले व्याख्याता थे। 23 मार्च 1931 को भगत सिंह तथा इनके दो साथियों सुखदेव व राजगुरु को फांसी दे दी गई। जबकि उन्हें 24 मार्च को फांसी देने का समय निर्धारित था।