मौलवियों का कहना है कि बड़ा इमामबाड़ा कोई टूरिस्ट स्पॉट नहीं है। यह 235 साल पुरानी ऐतिहासिक इमारत है। इस धरोहर का अपना इतिहास है। यह मुस्लिमों की भावनाओं से जुड़ा स्थल है। इसलिए इसकी धार्मिक पवित्रता को बनाए रखना जरूरी है। लेकिन इस स्थल पर अक्सर नयी उमर के जोड़े प्यार का इजहार करते पाए जाते हैं। कुछ लोग यहां सैर-सपाटे के उद्देश्य से आते हैं। वे नापाक तरीके से फोटो शूटिंग करते हैं। यहीं नहीं आए दिन इस ऐतिहासिक स्थल पर फिल्मों की शूटिंग भी होती है। इससे स्थल की पवित्रता भंग होती है। इसलिए शिया मौलवियों, इतिहासकारों और नागरिकों ने प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री से आग्रह किया है कि इसकी पवित्रता की रक्षा की जाए।
भूल भुलैया जैसी फिल्मों की हुई है शूटिंग
बड़ा इमामबाड़ा परिसर में आए दिन फोटोशूट होता है। यहां ‘भूल भुलैया’ जैसी फिल्मों की शूटिंग भी हो चुकी है। धार्मिक गुरुओं ने इस कृत्य को ‘अपवित्र’ बताते हुए इस पर तत्काल रोक लगाने की मांग की है। इस संबंध में संस्कृति मंत्रालय,पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग, जिला प्रशासन और स्थानीय पुलिस प्रशासन को भी पत्र लिखा गया है।
कल्बे जव्वाद जैसे धार्मिक नेताओं ने की अपील
पत्र लिखने वाले सैयद मोहम्मद हैदर का कहना है, ‘परिसर में अशोभनीय कपड़े, फोटोशूट और अश्लील हरकतों की वजह से शिया समुदाय और धरोहर से प्रेम रखने वाले लोगों में असंतोष फैल रहा है। बड़ा इमामबाड़ा स्थित असाफी मस्जिद के इमाम-ए-जुमा मौलाना कल्बे जव्वाद, शिया चांद कमिटी के अध्यक्ष मौलाना सैफ अब्बास, विद्वान और मौलवी मौलाना कल्बे सिब्तैन नूरी, वरिष्ठ मौलवी मौलाना आगा रही, ऑल इंडिया शिया पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रवक्ता मौलाना यासूब अब्बास और मौलाना अब्बास इरशाद आदि ने ज्ञापन पत्र पर हस्ताक्षर किए हैं। इसके अलावा रोशन तकी और रवि भट्ट सहित कई इतिहासकारों ने भी हस्ताक्षर किए हैं।
2015 में बनाया था ड्रेस कोड
धार्मिक गुरुओं और इतिहासकारों की मांग है कि इमामबाड़ा में महिला गार्ड और गाइड की तैनाती की जाए। इससे रोजगार तो मिलेगा ही साथ ही इस धार्मिक स्थल की रक्षा हो सकेगी। साथ ही संवेदनशीलता भी बढ़ेगी। कहा गया है कि जिस तरह अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में पर्यटकों के लिए एक कठोर आचार संहिता है उसी तरह बड़ा इमामबाड़ा में भी होनी चाहिए। सन् 2015 में शिया समुदाय के लंबे प्रतिरोध के बाद अधिकारियों ने बड़ा और छोटा इमामबाड़ा के दरवाजों में ताला डालने, एक ड्रेस कोड वगैरह तय करने के नियम बनाए थे। यह नियम कुछ दिनों तक तो चले लेकिन बाद में इन्हें भुला दिया गया।
इमामबाड़ा किसने बनवाया
इमामबाड़ा अद्भुत वास्तुकला का नमूना है। इसका निर्माण नवाब आसफ़उद्दौला ने 1784 में कराया था। इसके संकल्पकार थे किफायतउल्ला, जो ताजमहल के वास्तुकार के निकटतम संबंधी थे। इसको असाफाई इमामबाड़ा भी कहते हैं। इसकी संरचना में गोथिक प्रभाव के साथ राजपूत और मुग़ल वास्तुकला का मिश्रण है। बड़ा इमामबाड़ा न मस्जिद है न मकबरा। लेकिन कक्षों के निर्माण और वॉल्ट के उपयोग से इसमें सशक्त इस्लामी प्रभाव दिखता है।
वास्तुकला का अद्भुत उदाहरण है बड़ा इमामबाड़ा
इमामबाड़ा वास्तव में एक विहंगम आंगन के बाद बना हुआ एक विशाल हॉल है, जहां दो विशाल तिहरे आर्च वाले रास्तों से पहुंचा जाता है। इमामबाड़े का केंद्रीय कक्ष करीब 50 मीटर लंबा और 16 मीटर चौड़ा है। इसकी स्तंभहीन कक्ष की छत करीब 15 मीटर से अधिक ऊंची है।
किसी पत्थर से नहीं बल्कि ईंटों से बना है इमामबाड़ा
यह हॉल लकड़ी, लोहे और पत्थर के बीम के बाहरी सहारे के बिना खड़ी विश्व की सबसे बड़ी संरचना है, जिसे किसी बीम या गार्डर के बिना ही ईंटों को आपस में जोडकऱ खड़ा किया गया है। इमामबाड़े में तीन विशाल कक्ष हैं, जिसकी दीवारों के बीच लंबे गलियारे हैं, जो लगभग 20 फीट चौड़े हैं। यही घनी और गहरी संरचना भूलभुलैया कहलाती है। यहां1000 से भी अधिक छोटे रास्ते हैं जो देखने में एक जैसे लगते हैं। पर ताज्जुब करने वाली बात यह है कि, ये सभी अलग-अलग रास्ते पर निकलते है। कुछ तो ऐसे भी हैं जिनके सिरे बंद है। इस इमामबाड़े पर उस समय 10 लाख रुपए व्यय हुए थे।
क्या मतलब है इमामबाड़े का
इमामबाड़े का ऐतिहासिक ही नहीं धार्मिक महत्व भी है और इसी के फलस्वरूप मुहर्रम के महीने में यहां से ताजिया का जुलूस निकाला जाता है। इमामबाड़ा का अर्थ है धार्मिक स्थल। यानी वह पवित्र स्थान या भवन जो विशेष रूप से हजऱत अली (हजऱत मुहम्मद के दामाद) तथा उनके बेटों, हसन और हुसेन, के स्मारक के रूप में बनाया जाता है। इमामबाड़ों में शिया संप्रदाय के मुसलमानों की मजलिसें और अन्य धार्मिक समारोह होते हैं। ‘इमाम’ मुसलमानों के धार्मिक नेता को कहते हैं। भारत में सबसे बड़े और हर दृष्टि से प्रसिद्ध इमामबाड़े में हुसेनाबाद का बड़ा इमामबाड़ा है। यह अपनी भव्यता तथा विशालता में भारत में ही नहीं, शायद संसार भर में अद्वितीय है। आसफुद्दौला की मृत्यु होने पर उसे इसी इमामबाड़े में दफनाया गया था। 1857 के भारतीय स्वाधीनता संग्राम के दिनों में पांच महीने तक इस भवन पर निरंतर गोलाबारी होती रही और उसकी दीवारें गोलियों से छिद गई, फिर भी उस भवन को कोई हानि नहीं पहुँची।
इमामबाड़े का ऐतिहासिक ही नहीं धार्मिक महत्व भी है और इसी के फलस्वरूप मुहर्रम के महीने में यहां से ताजिया का जुलूस निकाला जाता है। इमामबाड़ा का अर्थ है धार्मिक स्थल। यानी वह पवित्र स्थान या भवन जो विशेष रूप से हजऱत अली (हजऱत मुहम्मद के दामाद) तथा उनके बेटों, हसन और हुसेन, के स्मारक के रूप में बनाया जाता है। इमामबाड़ों में शिया संप्रदाय के मुसलमानों की मजलिसें और अन्य धार्मिक समारोह होते हैं। ‘इमाम’ मुसलमानों के धार्मिक नेता को कहते हैं। भारत में सबसे बड़े और हर दृष्टि से प्रसिद्ध इमामबाड़े में हुसेनाबाद का बड़ा इमामबाड़ा है। यह अपनी भव्यता तथा विशालता में भारत में ही नहीं, शायद संसार भर में अद्वितीय है। आसफुद्दौला की मृत्यु होने पर उसे इसी इमामबाड़े में दफनाया गया था। 1857 के भारतीय स्वाधीनता संग्राम के दिनों में पांच महीने तक इस भवन पर निरंतर गोलाबारी होती रही और उसकी दीवारें गोलियों से छिद गई, फिर भी उस भवन को कोई हानि नहीं पहुँची।
भूलभुलैया इमामबाड़े की खास पहचान
भूलभुलैया में मौजूद बावड़ी सीढ़ीदार कुएं को कहते हैं, जो इमामबाड़े में एक अचंभित करने वाली संरचना है। शाही हमाम नामक यह बावड़ी गोमती नदी से जुड़ी है, जिसमें पानी से ऊपर केवल दो मंजिले हैं, शेष तल साल भर पानी के भीतर डूबा रहता है। बताते हैं कि लखनऊ में रोजगार की कमी की वजह से भयावह भुखमरी की समस्या से निपटने और आवाम की भलाई और भर पेट भोजन की व्यवस्था करने के लिए इमामबाड़े के निर्माण कराया गया। कहते हैं कि यहां भूमिगत सुरंगों का ऐसा जाल है जो इमामबाड़े को दिल्ली, कोलकाता और फैजाबाद से जोड़ता है। जिसे लोगों की सुरक्षा को ध्यान में रखकर बंद कर दिया गया है।
भूलभुलैया में मौजूद बावड़ी सीढ़ीदार कुएं को कहते हैं, जो इमामबाड़े में एक अचंभित करने वाली संरचना है। शाही हमाम नामक यह बावड़ी गोमती नदी से जुड़ी है, जिसमें पानी से ऊपर केवल दो मंजिले हैं, शेष तल साल भर पानी के भीतर डूबा रहता है। बताते हैं कि लखनऊ में रोजगार की कमी की वजह से भयावह भुखमरी की समस्या से निपटने और आवाम की भलाई और भर पेट भोजन की व्यवस्था करने के लिए इमामबाड़े के निर्माण कराया गया। कहते हैं कि यहां भूमिगत सुरंगों का ऐसा जाल है जो इमामबाड़े को दिल्ली, कोलकाता और फैजाबाद से जोड़ता है। जिसे लोगों की सुरक्षा को ध्यान में रखकर बंद कर दिया गया है।