लखनऊ

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने ही फैसला को पलटा, 40 साल बाद हत्या का दोषी नाबालिग करार

इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने गैर इरादतन हत्या के मामले में 40 साल बाद एक आरोपित को वारदात के दौरान नाबालिग मानते हुए उसे जुवेनाइल घोषित किया है।

लखनऊNov 26, 2021 / 10:38 am

Karishma Lalwani

Accused Declared Juvenile after 40 Years in Culpable Homicide

लखनऊ. इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने गैर इरादतन हत्या के मामले में 40 साल बाद एक आरोपित को वारदात के दौरान नाबालिग मानते हुए उसे जुवेनाइल घोषित किया है। कोर्ट ने यह आदेश आरोपित द्वारा जेल में बिताई गई तीन साल की अवधि के दंड के आधार पर दिया है। वर्तमान में आरोपित की उम्र 56 वर्ष है। हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद जुवेनाइल की दलील पर अपना फैसला सुनाया है। यह फैसला जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस विवेक वर्मा की पीठ ने आरोपित संग्राम की ओर से दाखिल अपील सुनाया गया है।
1981 में सुनाई थी उम्रकैद की सजा

08 जनवरी, 1981 को अंबेडकर नगर (तब फैजाबाद) की एक अपर सत्र अदालत ने 25 नवंबर, 1981 को आरोपित राम कुमार और संग्राम को इब्राहिमपुर थाना क्षेत्र से जुड़े हत्या के एक मामले में उम्रकैद की सजा सुनाई थी। अपर सत्र अदालत के फैसले के खिलाफ दोनों ने हाईकोर्ट में 1981 में अपील दाखिल की थी। सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने दोषी पाए गए संग्राम की एक अर्जी पर अंबेडकर नगर के जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड से उसकी आयु निर्धारण के लिए जांच के आदेश दिए थे। तब दोषी की उम्र महज 15 साल थी।
बिना सुनवाई के अपील निस्तारित

11 अक्टूबर, 2018 को हाईकोर्ट ने अपील पर अपना फैसला सुनाते हुए दोनों की दोषसिद्धि बरकरार रखी। आरोपित को आईपीसी की धारा 302 में बदलकर आईपीसी की धारा 304 (1) के तहत 10 साल कर दी। संग्राम ने हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी और कहा कि घटना के समय वह जुवेनाइल था जिस पर बोर्ड की रिपोर्ट भी थी, लेकिन कोर्ट ने बिना उस पर सुनवाई किए ही अपील को निस्तारित कर दिया। इसके बाद 27 अगस्त, 2021 को यह कहकर केस वापस भेजा गया कि जुवेनाइल की तर्ज पर कानूनन कार्यवाही के किसी भी स्तर पर सुनवाई करनी पड़ेगी। इसके बाद हाईकोर्ट ने पुन: सुनवाई की और जुवेनाइल साबित होने पर आरोपित को अधिकतम तीन साल की ही सजा दी जा सकती है।
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