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टेक्नोलॉजी

युवा प्रतिभा: मुम्बई के शाद भामला की बनाई हियरिंग मशीन डब्ल्यूएचओ से भी स्वीकृत

महज़ 1 डॉलर की इस मशीन को विश्व स्वास्थय संगठन ने भी अपनी प्राथमिक उपकरण सूची में शामिल किया है।

Oct 05, 2020 / 04:53 pm

Mohmad Imran

युवा प्रतिभा: मुम्बई के शाद भामला की बनाई हियरिंग मशीन डब्ल्यूएचओ से भी स्वीकृत

आइआइटी मद्रास (IIT Madras) से पासआउट और वर्तमान में जॉर्जिया टेक्नीकल यूनिवर्सिटी (Georgia Technical University) में असिस्टेंट प्रोफेसर शाद भामला ने एक ऐसी सस्ती मशीन बनाई है जो बड़े-बुजुर्गों की सुनने की परेशानी को दूर करती है। महज 1 डॉलर यानी करीब 75 रुपए की इस मशीन को उन्होंने अपने डीआइवाइ यानी डू इट योरसेल्फ (Do It Yourseof) प्रोजेक्ट के तहत बनाया था।

ऐसे बनाई मशीन
इसे बनाने के लिए शाद ने एक 3डी प्रिंटेड केस, एक छोटा सर्किट बोर्ड और एक माइक्रोफोन का इस्तेमाल किया है। इसमें लगा एम्प्लीफायर ध्वनि के सिग्नल्स को बढ़ा देता है जबकि इसका फ्रीक्वेंसी फिल्टर अवाज को 1000 हर्ट्ज़ तक बढ़ा देता है। यह मशीन 15 डेसीबल्स तक की आवाज को हाई-पिच में बदल देती है वो भी ध्वनि की गुणवत्ता खराब किए बिना। इतना ही नहीं यह किसी भी अचानक उत्पन्न हुई हाई-फ्रीक्वेंसी के साउंड जैसे लाउड स्पीकर, हॉर्न या कुत्तों के भौंकने की आवाज को भी फिल्टर कर देती है ताकि कान के पर्दे पर कोई असर न पड़े।

युवा प्रतिभा: मुम्बई के शाद भामला की बनाई हियरिंग मशीन डब्ल्यूएचओ से भी स्वीकृत

डब्ल्यूएचओ ने भी दी स्वीकृति
मशीन में एक हैडफोन जैक भी है जिसमें रोज उपयोग किए जाने वाले सामान्य हैडफोन भी लगाए जा सकते हैं। इसमें एक लैनयार्ड भी है ताकि इसे आसानी से गले में आइपॉड की तरह लटका सकें। इसे बनाने की प्रेरणा उन्हें अपने दादा-दादी से मिली जिन्हें उम्र बढऩे के साथ ही सुनाई देने में परेशानी होने लगी। भामला ने इस मशीन को ‘लॉकऐड’ नाम दिया है। विश्व स्वास्थय संगठन सबसे गरीब तबके के ज़रूरतमंद व्यक्ति तक मेडिकल उपकरण पहुंचाने के लिए दर्जनों कार्यक्रम चला रहा है। शायद की यह मशीन सस्ती और उपयोगी होने के कारण विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अपने प्रोग्राम में शामिल करने की रूचि दिखाई है। उनकी यह मशीन विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से अनुमोदित 6 अन्य मशीनों में भी शामिल है।

युवा प्रतिभा: मुम्बई के शाद भामला की बनाई हियरिंग मशीन डब्ल्यूएचओ से भी स्वीकृत

ऐसे मिली प्रेरणा
भामला को इस मशीन के बनाने का विचार 15 साल में अपने दादा दादी को देखकर आया था। उम्र बढ़ने के कारण दोनों को सुनने में परेशानी होती थी। उनके परिवार ने तो दादा दादी का इलाज और ऑपरेशन करवा लिया लेकिन भमला उन लोगों के बारे में सोचने लगे जो इतना खरचा नहीं उठा सकते। उनका कहना है भारत जैसे देश में बहुत से लोग बढ़ती उम्र में सुनने में परेशानी महसूस करते हैं। सक्षम लोग तो इलाज करवा लेते हें लेकिन बहुत गरीब तबके के लोगों के लिए यह संभव नहीं। ऐसे में उनकी बनाई यह सस्ती मशीन एक कारगर विकल्प बन सकती है।

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