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टाइटैनिक डूबने के बाद भी कंपनी गढ़ रही थी सफलता की कहानी
टाइटैनिक डूबने का अनुभव भले ही कंपनी के लिए अच्छा ना रहा हो, लेकिन कंपनी ने उसके बाद भी कभी पीछे मुढ़कर नहीं देखा। कंपनी की सफलता लगातार आसमान छू रही थी। कहानी दूसरे विश्व युद्घ के बाद खराब हुई। जब ट्रांस-अटलांटिक एयर ट्रैवल बढऩे की वजह से शिप बिल्डिंग इंडस्ट्री सिमटने लगी। 1975 में हार्लेंड एंड वोल्फ नेशनलाइज्ड हुआ। 1989 में नार्वेजियनऑफशोर ड्रिलिंग कंपनी फ्रेड ओल्सन एनर्जी ने इसे खरीदा था। उस समय इस कंपनी में 10,000 लोग काम कर रहे थे। कंपनी का नाम डॉल्फिन ड्रिलिंग हो गया था। जिसने इसी साल की शुरुआत में दिलाविया प्रक्रिया के लिए फाइल किया है।
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कभी 35 हजार लोग करते थे काम
अगर समय का पहिया थोड़ा पीछे की ओर घुमाएं तो 1935 यानी सेकंड वल्र्ड वॉर से पहले हार्लेंड एंड वोल्फ शिपयार्ड में करीब 35,000 कर्मचारी काम करते थे। अब मौजूदा समय में कंपनी दिवालिया प्रकिया ये गुजर रही है तो यहां पर सिर्फ 123 कर्मचारी ही काम कर रहे हैं।
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सिर्फ टाइटैनिक ही नहीं बल्कि युद्घपोतों का भी किया निर्माण
कंपनी की उपलब्धि सिर्फ टाइटैनिक तक ही सीमित नहीं है। कंपनी ने उसके बाद सेकंड वल्र्ड वॉर के लिए 150 से ज्यादा युद्धपोतों का भी निर्माण किया। 2003 के बाद से कंपनी ने एक भी जहाज या फिर युद्घपोत नहीं बनाया। कंपनी के बंद होने से पहले अक्षय उर्जा जैसे ऑफशोर विंड और ट्राइडल टर्बाइन पर काम कर रही थी।
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कुछ ऐसा है टाइटैनिक का इतिहास
टाइटैनिक जहाज के बारे में वैसे तो बताने की जरुरत नहीं है। फिर भी इसका निर्माण 1909 में हुआ था और 1912 में बनकर पूरी तरह से तैयार हो गया था। टाइटैनिक अपनी पहली ही यात्रा में आइसबर्ग से टकराकर समुद्र में समा गया था। यह दुर्घटना समुद्री इतिहास के सबसे भीषण दुर्घटनाओं में से एक मानी जाते हैं। टाइटैनिक जहाज पर सवार 2,223 यात्रियों में से 1,517 यात्री मर गए थे।
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