इसके पीछे कारण साफ है कि रोडवेज में राजस्व बढ़ाने पर शुरू में तो ध्यान दिया गया, लेकिन घाटा कम करने के प्रयास नहीं किए गए। ऐसे में आर्थिक तंगी से जूझ रही रोडवेज ने खुद की बसें खरीदने के बजाय निजी बसों को अनुबंध पर लगा लिया। आज आलम यह है कि 3200 में से 1300 बसें निजी हैं। रोडवेज में बढ़ते निजीकरण से रोडवेज कर्मचारी भी परेशान हैं, उन्हें डर सताने लगा है कि कहीं सरकार रोडवेज को निजी हाथ में नहीं सौंप दें। वहीं, इसके चलते प्रदेशभर में रोडवेज कर्मचारियों को दो माह देरी से वेतन मिल रहा है।
प्रदेशभर में रोडवेज का बेड़ा
मॉडल- बस की संख्या2012- 411 लू लाइन, 94 स्टार लाइन, 36 स्लीपर
2013- 789 लू लाइन, 10 स्लीपर, 10 एसी स्लीपर और 368 मिनी
2014- 100 लू लाइन, 133 मिनी
2015- 10 सुपर लग्जरी
2016- 283 ब्लू लाइन, 5 लग्जरी
2017- 2015 ब्लू लाइन, 12 लग्जरी
2018- कोई बस नहीं
2019- 875 ब्लू लाइन
2020 व 2023 में बस नहीं खरीदी
(इसमें 2015 तक की बसों के किमी पूरे हो चुके हैं, जिन्हें कंडम करने के लिए लिख रखा है, लेकिन बसों की कमी के कारण उन्हें जुगाड़ से चलाया जा रहा है।)
90 करोड़ हर माह घाटा
राजस्थान रोडवेज में करीब 150 करोड़ रुपए प्रतिदिन राजस्व अर्जित किया जा रहा है, जबकि रोडवेज का खर्च 240 करोड़ रुपए प्रतिदिन हैं। ऐसे में 90 करोड़ का नुकसान रोजाना हो रहा है। वहीं राज्य सरकार की ओर से हर साल करीब 1000 करोड़ रुपए से अधिक का अनुदान देकर रोडवेज निगम को चलाया जा रहा है। इससे सरकार को आर्थिक नुकसान हो रहा है।रोडवेज के 2600 परिचालकों से करा रहे बाबुओं का काम
राजस्थान रोडवेज के पास में खुद के 4500 परिचालक हैं, लेकिन इन दिनों 1900 रोडवेज के परिचालक बसों में कार्य कर रहे हैं, शेष परिचालक बस स्टैंड पर लिपिक या बुकिंग काउंटर पर काम कर रहे हैं। इसी प्रकार राजस्थान रोडवेज के पास खुद के 4439 चालक हैं। इसके बाद भी रोडवेज ने करीब 800 चालकों को अनुबंध पर ले रखा है, जबकि रोडवेज का संचालन एक समय में प्रतिदिन 16 लाख किमी था, अब 11 लाख किमी ही रह गया है। राजस्थान रोडवेज के बेड़े में हाल ही 510 नई बसों को शामिल किया गया है। उनको डिपो में भेज दिया गया है। आम जनता को राहत देने के लिए विभाग अपने स्तर पर तैयारी कर रहा है। जल्द स्टाफ की भर्ती भी की जाएगी।
- प्रेमचंद बैरवा, उपमुख्यमंत्री व परिवहन मंत्री
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