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कोटा

Chambal River : दक्षिण-पूर्वी राजस्थान की वरदान चम्बल तबाही के लिए मजबूर

– तबाही इसलिए, क्योंकि चम्बल व अन्य नदियों के प्राकृतिक स्वरूप से छेड़छाड़ कर रौद्र होने के लिए किया मजबूर
– वरदान इसलिए, क्योंकि इनसे हो रहा लाखों लोगों का भरण-पोषण, हरित, श्वेत व बिजली क्रांति से बढ़ रही समृद्धि

कोटाAug 10, 2021 / 09:05 pm

Kanaram Mundiyar

दक्षिण-पूर्वी राजस्थान की वरदान चम्बल तबाही के लिए मजबूर

दक्षिण-पूर्वी राजस्थान की वरदान चम्बल तबाही के लिए मजबूर

के. आर. मुण्डियार

कोटा.

मध्यप्रदेश के जानापाव पहाडिय़ों से निकलकर बारह मास बह रही सदानीरा चम्बल दक्षिणी-पूर्वी राजस्थान के लिए वरदान है। मां चर्मण्यवती की बदौलत ही न केवल हाड़ौती बल्कि पूरा राजस्थान क्षेत्र हरित, श्वेत व बिजली क्रांति की अग्रिम पंक्ति में खड़ा है। यह बात अलग है कि वरदान के साथ चम्बल व उसकी सहायक नदियां कई बार तबाही भी मचा देती हैं। नदियां जब परवान चढ़ती हैं, तब तटों से सटे कस्बे व शहर चपेट में आकर भारी तबाही भी झेलते हैं। चम्बल ने कोटा से लेकर धौलपुर तक कई बार तबाही मचाई। इस मानसून में भी चम्बल व उसकी सहायक नदियों की बाढ़ ने जनजीवन को अस्त-व्यस्त कर दिया। चूंकि खुशहाली व समृद्धि भी चम्बल से ही आ रही है, इसलिए दक्षिणी-पूर्वी राजस्थान के 6 जिलों के लोग इन नदियों के वरदान के साथ अभिशाप भी झेलते रहते हैं।

क्यों रास्ता बदल रही चम्बल, रौद्र रूप का कारण

– कोटा से लेकर धौलपुर तक नदी के पेटे व किनारों से मिट्टी व बजरी का अवैध खनन किए जाने से तटों को भारी नुकसान हो रहा है। नदी के प्राकृतिक स्वरूप से छेड़छाड़ होने से खतरा बढ़ता है।
कोटा के आस-पास नदी के किनारों पर अवैध बस्तियां बस जाने से बहाव एरिया कम हो रहा है।
– धौलपुर जिले के 100 किलोमीटर के एरिया में 28 जगहों पर बजरी का अवैध खनन बड़े स्तर पर हो रहा है।
– अवैध खनन से चम्बल घडिय़ाल सेन्चुरी के घडिय़ालों का प्रजनन प्रभावित हो जाता है।
वरदान : हाड़ौती में हरित क्रांति
– 11 लाख हैक्टयर में फसलों की कुल बुआई

– 6.50 लाख हैक्टयर में सोयाबीन
– 1.10 लाख हैक्टयर में धान (चावल)

– 2 लाख हैक्टयर में धनिया
– 2000 हैक्टयर में संतरा
– 4300 करोड़ रुपए का गेहूं उत्पादित


– 24 लाख यूनिट का बिजली उत्पादन प्रतिदिन जवाहर सागर बांध केे पन बिजलीघर से

– 294 लाख यूनिट बिजली का उत्पादन प्रतिदिन कोटा सुपर थर्मल पावर से

इस मानसून ऐसे आई तबाही

कोटा संभाग में तबाही
– 30 की जनहानि (बूंदी-11, कोटा-6, बारां-10 व झालावाड़ में 3 जनों की मौत)

– 4 लाख हैक्टयर में फसलें चौपट
– 2400 पशुधन बहे
– 9200 मकान ढहे
– 5000 दुकानों को नुकसान

– 400 करोड़ का कारोबार चौपट
– 4400 किलोमीटर सड़कें हुई क्षतिग्रस्त

– 20 लाख का नुकसान कोटा शहर में बिजली कम्पनी को हुआ
– 100 लाख का नुकसान विद्युत निगम को हुआ कोटा ग्रामीण क्षेत्र में
( विभागों की जानकारी के अनुसार प्रारम्भिक आंकड़ा, सर्वे के बाद बढ़ सकता है )


धौलपुर में चम्बल का कहर

– 5000 हैक्टेयर भूमि प्रभावित
– 189 बिजली के ट्रांसफार्मर हुए खराब

– 133 किलोमीटर सड़कें क्षतिग्रस्त
– 2500 मकानों को नुकसान
चम्बल पर बने हैं चार बांध
गांधी सागर (मंदसौर-मध्यप्रदेश)- भराव क्षमता- 1312 फीट

राणाप्रताप सागर (रावतभाटा-चित्तौडगढ़़)- भराव क्षमता-1157.50 फीट
जवाहर सागर (बूंदी-कोटा)- भराव क्षमता-980 फीट

कोटा बैराज (कोटा)- भराव क्षमता- 852 फीट


चम्बल व उसकी सहायक नदियां
सदानीरा चम्बल मध्यभारत की प्रसिद्ध यमुना की सहायक नदी है। उद्गम मध्यप्रदेश की जानापाव की पहाडिय़ों से है। कुल लम्बाई लगभग 943 किलोमीटर है। राजस्थान में 374 किलोमीटर बहते हुए मध्यप्रदेश के साथ सीमा बनाती है। आगे उत्तरप्रदेश के इटावा के पास यमुना में मिलती है। चम्बल राजस्थान में 6 जिले (चित्तौडगढ़़, कोटा, बूंदी, सवाईमाधोपुर, करौली, धौलपुर) से होकर गुजरती है। चम्बल की प्रमुख सहायक नदियां क्षिप्रा, बनास, कालीसिंध, पार्वती, अलनिया, आहू, परवन, बामली, कुनाल, मेज, छोटी कालीसिंध है।

क्षिप्रा

इन्दौर के उज्जैनी मुंडला गांव के पास से निकलती है। मध्यप्रदेश में 196 किलोमीटर बहने के बाद चम्बल में मिल जाती है।
कालीसिंध

मध्यप्रदेश के देवास जिले में विध्यांचल पहाडिय़ों से निकलती है। कालीसिंध मध्यप्रदेश से होती हुई झालावाड़, पलायथा होती हुई इटावा के पास नवनेरा में चम्बल में मिल जाती है।
आहू
मध्यप्रदेश में बहती हुई झालावाड़ के गागरोन के पास कालीसिंध में मिलती है।
पार्वती

पार्वती मध्यप्रदेश के भोपाल से होती हुई राजस्थान के कालीघाट होती हुई खातौली के आगे सवाईमाधोपुर के पाली घाट के पास चम्बल में मिल रही है।
परवन
मध्यप्रदेश के विध्यांचल पर्वत शृंखला से निकलती है। झालावाड़ में मनोहरथाना होते हुए बारां के पलायथा के पास कालीसिंध में मिल जाती है।
उजाड़

उजाड़ नदी भीमसागर बांध से होती हुई पलायथा विनोदखुर्द, कुन्दनपुर होती हुई कालीसिंध व परवन में मिल रही है।
बनास
राजसमंद जिले के खमनौर की पहाडिय़ों से निकलती है। नाथद्वारा, राजसमंद, भीलवाड़ा, टौंक, सवाईमाधोपुर जिले के रामेश्वरम के निकट चम्बल में मिलती है।
मेज नदी

भीलवाड़ा के मांडलगढ़ से शुरू होती है, जो बूंदी जिले से होकर कोटा जिले के ककावता के पास चम्बल में मिल जाती है।
कुनो नदी
मध्यप्रदेश के गुना जिले के पटई गांव से निकलती है। मध्यप्रदेश में 180 किलोमीटर बहने के बाद मुरैना के पठार के आगे पांचों के पास चम्बल में मिल जाती है।


आधे राजस्थान की प्यास बुझाएगी चम्बल
हर साल चम्बल का अथाह जल व्यर्थ बहकर यमुना के जरिए बंगाल की खाड़ी में चला जाता है। चम्बल की इस अथाह जलराशि को राजस्थान में सहेजने की जरूरत है। देश में नदियों को जोडऩे की परियोजना पर काम पूरा होगा, तब चम्बल आधे राजस्थान की प्यास बुझा रही होगी।

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