देवी को राजस्थानी भोग पसंद
कनेर व पान के पत्तों की कटिंग कर ब्रह्माणी माता का शृंगार किया जाता है। सुबह दाल-बाटी, शाम को लड्डू-बाटी का भोग लगता है, लेकिन देवी को भोग में बताशे भी बेहद पसंद हैं। मंदिर में पिछले 400 से अधिक वर्षों से अखण्ड ज्योत जल रही है।ऐसा है मंदिर का स्वरूप
बारां से 28 किमी दूर सोरसन में ब्रह्माणी माता का प्राचीन मंदिर है। माता का प्राकट्य शताब्दियों पूर्व का बताया जाता है। करीब 1000 वर्ष पहले का प्राकट्य बताते हैं। मंदिर का निर्माण मानाजी बोहरा ने करवाया। मंदिर पुराने किले में स्थित है। इसे गुफा मंदिर भी कहा जा सकता है। मंदिर के द्वार काफी कलात्मक हैं। मुख्य प्रवेश द्वार पूर्वाभिमुख हैं। परिसर के मध्य स्थित देवी मंदिर में गुबद द्वार, मंडप और शिखरयुक्त गर्भगृह है। गर्भगृह में विशाल चट्टान है, जहां देवी विराजमान हैं। पास ही शिव मंदिर है। शिवरात्रि पर यहां मेला लगता है।दुखियारों के दु:ख हरती, मनोकानमाएं पूर्ण करती देवी
पुजारी भवानीशंकर शर्मा बताते हैं कि देवी के दर्शन करने के लिए हाड़ौती समेत देशभर से लोग आते हैं। देवी शादी-विवाह, सगाई, नौकरी, व्यवसाय, संतान के लिए श्रद्धा व विश्वास से की गई मनोकामना पूर्ण करती हैं और दुखियारों दु:ख हरती हैं। मनोकामनाएं पूरी होने पर श्रद्धालु चढ़ावा देते हैं। रसोई इत्यादि करते हैं। यह भी पढ़ें
पहाड़ चीरकर निकली थी बांकी माता, रथ की सुगनी की होती है पूजा
एक किवदंती यह
किवदंती है कि देवी सोरसन के खोखरजी नाम के श्रीगौड़ ब्राह्मण से प्रसन्न हुई थी। तब से खोखरजी के वंशज ही देवी पूजन करते रहे हैं। हरिशंकर शर्मा बताते हैं कि उन्हीं की पीढ़ी पूजा कर रही है।देवी ने ही बताई थी पूजा की विधि
कोलारजी मंदिर के प्रथम पुजारी थे। देवी ने खुद जंगल में गाय चराते हुए कोलारजी से पूजन का आग्रह किया था। कोलारजी ने पूजा के लिए यह कहते हुए मना कर दिया था कि मैं आपको कहां ढूंढ सकूंगा तो देवी ने ही पूजन की विधि बताई। यह भी पढ़ें