यह साफ है कि हाड़ौती में भारी बरसात पहली बार नहीं हो रही। यहां के लोगों ने भारी बरसात कई बार देखी और झेली है। हाड़ौती के लोग तो आपदा से निपटना भी जानते हैं। तीन दशक पहले तक कहीं पर अधिक बरसात के बावजूद जनजीवन खतरे में नहीं पड़ता था। बीते दशकों में ही लगातार शहरीकरण बढऩे के साथ ही रास्तों, नदी-नालों के किनारे बसी बस्तियों के कारण जलप्लावन का खतरा अधिक बढ़ गया है। अब औसत से कम बरसात में ही हालात विकट हो रहे हैं।
सवाल है कि ऐसे हालात के लिए जिम्मेदार कौन है? बरसाती पानी के आवक व रास्तों पर बस्तियां किसने व क्यों बसने दी। नालों व तालाब की जमीनों पर अवैध मकान कैसे बन गए? जब अवैध बस्तियां बस रही थी, तब नेता और अफसर क्या कर रहे थे। आज हालात बिगड़ रहे हैं तो सरकार को ही कोसा जा रहा है। लेकिन ऐसे हालात क्यों बने, उस पर किसी का ध्यान नहीं है। किसी भी शहर व कस्बों में बरसाती पानी की निकासी सुगम नहीं है। बरसात से पहले नालों व नालियों की सफाई भी कागजों में ही पूरी हो जाती है। यही वजह है कि हर साल बरसात के दौरान कोटा व बारां शहर के कई क्षेत्रों में जल भराव की स्थिति बन जाती है।