नया मामला विकासखंड
कोरबा अंतर्गत अजगरबहार क्षेत्र से सामने आया है। ग्राम कदमझरिया में रहने वाली पहाड़ी कोरवा महिला गुरुवती को प्रसव पीड़ा होने पर 24 नवंबर की शाम अजगरबहार के सरकारी अस्पताल में भर्ती किया गया था। स्थिति गंभीर होने पर रात लगभग 3 बजे महतारी एक्सप्रेस को सूचना मिली। कॉलर ने गर्भवती महिला को मेडिकल कॉलेज अस्पताल में भर्ती कराने के लिए संपर्क किया था। यहां से गर्भवती महिला को मेडिकल कॉलेज अस्पताल रेफर किया गया था।
रास्ते में महिला को प्रसव पीड़ा हुई और उसने शिशु को जन्म दिया। पैदा होने के बाद शिशु नहीं रोया तब एंबुलेंस चालक सह ईएमटी (इमरजेंसी टेक्निकल स्टाफ) ने बच्चे के पैर में उंगली से मारा और परिवार को भी धीरे-धीरे उंगली से पैर में मारने के लिए कहा। प्रसव स्थल से एंबुलेंस आगे बढ़ी तो बच्चे के रोने की आवाज आई। 25 नवंबर की सुबह बच्चा-जच्चा को मेडिकल कॉलेज अस्पताल में भर्ती किया गया। देर रात इलाज के दौरान शिशु की मौत हो गई। घटना कैसे हुई यह अभी स्पष्ट नहीं है लेकिन इस मामले ने लचर स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल खोलकर रख दी है।
एक दिन पहले हुई थी महिला और उसके जुड़वा बच्चों की मौत
एक दिन पहले करतला के ग्राम जोगीपाली की रहने वाली आंगनबाड़ी कार्यकर्ता कांति राठिया और उसके जुड़वा बच्चों की मौत हो गई थी। उसने समय से पहले दोनों बच्चों को जन्म दिया था। शाम 5 बजे के बाद अजगरबहार में नहीं रहते डॉक्टर
बताया जाता है कि अजगरबहार के
सरकारी अस्पताल में मरीजों के इलाज के लिए एक डॉक्टर और स्टॉफ नर्स की भर्ती की गई है। डॉक्टर सुबह 10 से शाम 5 बजे तक रहते हैं। इसके बाद लौट जाते हैं। शाम से देर रात और अगले दिन सुबह तक डिलिवरी के लिए आने वाली महिलाओं की देखरेख नर्स करती है। नर्स की मदद से ही प्रसव कराया जाता है। स्थिति गंभीर होने पर गर्भवती महिला को रेफर कर दिया जाता है। संरक्षित जनजाति पहाड़ी कोरवा महिला को जब प्रसव के लिए अजगरबहार अस्पताल पहुंचाया गया था तब वहां डॉक्टर नहीं थे। नर्स ने प्रारंभिक तौर पर देखरेख की और उसे लगा कि मामला गंभीर है तो नर्स ने रेफर कर दिया। ग्रामीण क्षेत्रों में स्थित अधिकांश सरकारी अस्पतालों का हाल बुरा है।