गुफा की खोज कुछ दिन पहले जिला पुरातत्व संग्रहालय के मार्गदर्शक हरि सिंह क्षत्री ने स्थानीय
ग्रामीणों की मदद से की है। क्षत्री का दावा है कि यह गुफा ताम्रपाषाण युग की है। उन्होंने बताया कि इसकी सूचना पुरातत्ववेत्ता पद्मश्री से सम्मानित केके मोहम्मद, कर्नाटक के पुरातत्वविद रवि कोरीसेट्टार, वाकणकर शोध संस्थान उज्जैन के पदाधिकारी व पुरातात्विक जानकार विनीता देशपांडे के अलावा स्थापत्य कला विशेषज्ञ इंद्रनील बंकापुरे कोल्हापुर को वीडियो कॉल के माध्यम से दी है। शैल चित्रों को देखकर के.के. मोहम्मद ने संभावना जताई है कि चित्र ताम्रपाषाण युग के हो सकते हैं। जिनका संबंध 4000 साल पुराना है।
डॉक्यूमेंटेशन की तैयारी
पुरातत्ववेत्ता के.के. मोहम्मद ने इन शैल चित्रों का डॉक्यूमेंटेशन करने के आवश्यक निर्देश दिए हैं। ताकि इन्हें विज्ञान की कसौटी पर परखा जा सके। साथ ही आसपास पाषाणकालीन लघु उपकरणों की खोजबीन करने के लिए कहा है। ताकि यहां की प्राचीन स्थिति और मानव सभ्यता के विकास में दुधीटांगर में मिले शैल चित्रों को देखकर कोई निष्कर्ष निकाला जा सके।
कोरबा में यह तीसरी गुफा
शैल चित्रों का विकास मानव सभ्यता के इतिहास से जुड़ा है। पूर्व में मानव अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए शैल या चट्टानों पर चित्र उकेरता था। तब उसके पास लिखने के लिए कोई लिपि नहीं थी। कोरबा में खोज की गई यह तीसरी गुफा है। संभावना है कि इस गुफा में आदि मानव रहता था। इसके पहले इसी प्रकार की गुफा अरेतला के जंगल में मिली थी।
आदि मानव के निशान का दावा
कोरबा जिले में आदिमानवों के अनेक ठिकानों को खोजने का दावा पूर्व में हरि सिंह कर चुके हैं। इसमें 25 चित्रित शैलाश्रयों के अलावा अचित्रित शैलाश्रयों की खोज शामिल है। कोरबा में पाषाणकाल के उपकरण भी पूर्व में मिले हैं, जिन्हें जिला पुरातत्व संग्रहालय में रखा गया है।