याचिका में दी यह दलील
याचिका में संविधान के अनुच्छेद 361 (2) के प्रावधान का हवाला देते हुए दलील दी गई कि ऐसी शक्तियों को पूर्ण नहीं समझा जा सकता। इससे राज्यपाल को ऐसे कार्य करने का अधिकार मिल जाए जो अवैध हों या जो संविधान के भाग तीन की बुनियाद पर हमला करते हों। संविधान के अनुच्छेद 361 (2) में कहा गया है कि राष्ट्रपति या किसी राज्य के राज्यपाल के खिलाफ उनके कार्यकाल के दौरान किसी भी अदालत में कोई आपराधिक कार्यवाही शुरू नहीं की जा सकती या जारी नहीं रखी जा सकती है।
कोई भी व्यक्ति कानून से ऊपर नहीं: महिला
याचिका के अनुसार, महिला ने अपनी शिकायतों को उजागर करते हुए राजभवन को एक शिकायत पत्र भी भेजा था लेकिन, संबंधित अधिकारियों द्वारा कथित तौर पर अपने कर्तव्यों का निर्वहन नहीं किया। महिला का आरोप है कि इस मामले में उसे अपमानित किया गया और मीडिया में उसका मजाक उड़ाया गया। उसे राजनीतिक हथियार बताया गया, जबकि उसके आत्मसम्मान की सुरक्षा के लिए कोई उपाय नहीं किया गया। याचिकाकर्ता ने यह भी दलील दी कि कोई भी व्यक्ति कानून से ऊपर नहीं और संवैधानिक छूट की आड़ में राज्यपाल को किसी भी तरह से अनुचित तरीके से कार्य करने और लैंगिक हिंसा करने की अनुमति नहीं है।
मौलिक अधिकारों पर हमला: शिकायतकर्ता
शिकायतकर्ता महिला ने याचिका में कहा है यह विशेष अधिकार सीधे तौर पर संविधान के तहत उसके साथ ही प्रत्येक व्यक्ति को दिए गए मौलिक अधिकारों पर हमला करता है। याचिका में कहा गया कि इस मामले में पीडि़ता को झूठा बनाना, जबकि यह सुनिश्चित करना कि आरोपी राज्यपाल खुद को क्लीन चिट दे दें, सत्ता का ऐसा अनियंत्रित इस्तेमाल एक गलत मिसाल कायम करेगा। ऐसे में यौन पीडि़तों को कोई राहत नहीं मिलेगी। यह संवैधानिक लक्ष्य का पूर्ण उल्लंघन होगा।
ओडिसी नर्तकी की शिकायत का भी जिक्र
महिला की याचिका में 15 मई 2024 की प्रेस रिपोर्ट का भी हवाला दिया गया, जिसमें कहा गया है कि बंगाल की एक ओडिसी नर्तकी ने भी अक्टूबर 2023 में शिकायत दर्ज कराई थी। इसमें राज्यपाल पर जनवरी 2023 में नई दिल्ली के एक होटल में उसका यौन शोषण करने का आरोप लगाया गया था। इस बारे में मई 2024 में कोलकाता पुलिस द्वारा राज्य सरकार को सौंपी गई जांच रिपोर्ट में यह दावा किया गया है। संविधान का अनुच्छेद 361, संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) का अपवाद है और प्रावधान करता है कि राष्ट्रपति या राज्यपाल अपने पद के तहत प्राप्त शक्तियों के इस्तेमाल और कर्तव्यों के लिए किसी भी अदालत के प्रति जवाबदेह नहीं हैं।