परमार-कालीन शिव-मंदिर तथा जैन मंदिरों के लिये भी यह क्षेत्र प्रसिद्ध है। खजुराहो के अलावा केवल यहीं परमार-कालीन प्राचीन मंदिर हैं। हालांकि ऊन की सबसे ज्यादा ख्याति महालक्ष्मी मंदिर के ही कारण है. महालक्ष्मी मंदिर बहुत प्राचीन है, यह 11वीं शताब्दी का मंदिर है। बताया जाता है कि यहां दिन में तीन बार अलग-अलग रूपों में माता महालक्ष्मी के दर्शन होते हैं।
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देश के प्राचीनतम लक्ष्मी मंदिरों में मुंबई के बाद ऊन के महालक्ष्मी मंदिर का ही नाम आता है। इसलिए यहां नवरात्रि और खासतौर पर दिवाली के दिन दूर-दूर से श्रद्धालु दर्शन और पूजन के लिए आते हैं। दिवाली पर 50 हजार से अधिक श्रद्धालु यहां सुख-समृद्धि की कामना लेकर आते हैं. इस अवसर पर माता को यहां के प्रसिद्ध बत्तीस पंखुडियों के कमल फूल भी अर्पित किए जाते हैं. दीपावली पर यहां मां के वाहन उल्लू के दर्शन भी कराए जाते हैं
मंदिर प्रबंधन ने भक्तों की सुविधा के लिए टेक्नालाजी का भरपूर उपयोग किया है. यूट्यूब के साथ ही मोबाइल पर महालक्ष्मी एप तथा महालक्ष्मी डॉट काम पर भी माता के लाइव दर्शन की व्यवस्था की जाती रही है. महालक्ष्मी मंदिर के प्रति बच्चों में भी खासी आस्था है. यहां आनेवाले बच्चे अपने मोबाइल पर परिजनों को माता के आनलाइन दर्शन कराते दिखते हैं.
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इस मंदिर में महालक्ष्मी के दर्शन और पूजन करने से मां लक्ष्मी की कृपा बरसती है. मालवा—निमाड़ को देशभर में सबसे समृद्ध इलाका माना गया है. मान्यता है कि महालक्ष्मी की कृपा से ही यहां संपन्नता आई है. यही कारण है कि मालवा—निमाड़ क्षेत्र में शुमार खरगौन, देवास, इंदौर, उज्जैन, खंडवा समेत पूर्वी और पश्चिमी निमाड़ से बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां आते हैं। मंदिर में महाराष्ट्र से भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु महालक्ष्मी पूजन के लिए आते हैं.