डीजीपीएल का कहना है कि अश्वबोट की क्षमता को देखते हुए रक्षा प्रयोगशाला (डीआरडीओ) ने इसमें एक विशेष सेंसर लगाने की पेशकश भी की है ताकि नाभिकीय विकिरण, रासायनिक व जैविक हमले के खतरे के समय सैन्य सामग्री को अश्वबोट से ट्रांसपोर्ट किया जा सके। डीजीपीएल अब 1000 से 3 हजार किलो सामग्री ढोने वाला रोबोट बनाएगी।
इसलिए सेना की जरुरत समझी
जोधपुर के फलोदी के मनीष चौधरी, भरत थानवी और मधुकर मोखा ने मिलकर डीजीपीएल स्टार्टअप शुरू किया। विंग कमाण्डर मनीष एयरफोर्स में लड़ाकू विमान के पायलट थे। भरत वकील और मधुकर फार्मासिस्ट हैं। तीनों ने डिफेंस स्टार्ट अप शुरू किया। विंग कमाण्डर मनीष कहते हैं कि वे एयरफोर्स में थे इसलिए सेना की जरूरतों को नजदीक से समझते हैं।
यह खासियत है अश्वबोट में
अश्वबोट में 7 हाईरेजोल्यूशन कैमरा, लाइट डिटेक्टिंग एण्ड रेंजिंग सेंसर, राडार, अल्ट्रासोनिक सेंसर सहित एआई युक्त तकनीक है जो चार पहियों पर चलता है। यह 10 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से 20 किलोमीटर तक चल सकता है। इसमें प्रोग्रामिंग के बाद केवल ओटीपी से ही खोला जा सकता है। इसमें 70 प्रतिशत भारतीय पुर्जे लगे हैं। वर्तमान में इसकी कीमत करीब 70 लाख आई है, लेकिन वाणिज्यिक उत्पादन से इसकी 20 प्रतिशत कीमत कम हो सकती है। यह सभी मौसम में कारगर है। आगे-पीछे कहीं घूम सकता है। लीथियम आयन की बैटरी है। बैटरी बैक अप खुद रखता है। अपने आप चार्जिंग स्टेशन पहुंचता है।