अंग्रेजों की गुलामी होती पुस्तक में जिक्र किया गया है कि जब जॉर्ज पंचम भारत आए थे तो उन्होंने तमाम राजाओं और नवाबों को दिल्ली दरबार में बुलाया था और मेवाड़ के तत्कालीन महाराणा फतहसिंह को भी वहां आमंत्रित किया था। उस समय क्रांतिकारियों को यह बात पता चली तो उन्होंने क्रांतिकारी व कवि केसरीसिंह बारहठ सेे कहा था कि यदि मेवाड़ के महाराणा दिल्ली जाते हैं तो यह अंग्रेजों की गुलामी होती, इसलिए उन्हें किसी भी तरह रोका जाए। तब बारहठ ने 13 सोरठों के माध्यम से राजाओं को स्वाभिमान और स्वाधीनता याद दिलाई थी।
दिल्ली दरबार नहीं पहुंचे
इस पुस्तक में लिखा है कि बारहठ ने गोपालसिंह खरवा ने यह जिम्मेदारी ली कि वे महाराणा तक ये सोरठे पहुंचाएंगे, लेकिन इसी बीच महाराणा फतहसिंह ट्रेन से दिल्ली के लिए रवाना हो चुके थे। तब ये सोरठे किसी तरह जल्दी से जल्दी महाराणा फतहसिंह तक पहुंचाने की तरकीब सोची गई और हर दस कोस पर एक-एक घोड़ा खड़ा कर कागज दिल्ली स्टेशन पर फतहसिंह तक पहुंचाया गया। महाराणा फतहसिंह ने कहा कि अगर यह कागज दिल्ली में मिल जाता तो वे दिल्ली ही न आते। उन्होंने पेट दर्द का बहाना बना कर दिल्ली में होते हुए भी दिल्ली दरबार नहीं पहुंचे। किताब में उल्लेख है कि जॉर्ज पंचम को दरबार में महाराणा मेवाड़ की खाली कुर्सी बार-बार खटकती रही। वह कुुर्सी आज भी उदयपुर के सिटी पैलेस म्यूजियम में रखी हुई है।
इस पुस्तक में लिखा है कि बारहठ ने गोपालसिंह खरवा ने यह जिम्मेदारी ली कि वे महाराणा तक ये सोरठे पहुंचाएंगे, लेकिन इसी बीच महाराणा फतहसिंह ट्रेन से दिल्ली के लिए रवाना हो चुके थे। तब ये सोरठे किसी तरह जल्दी से जल्दी महाराणा फतहसिंह तक पहुंचाने की तरकीब सोची गई और हर दस कोस पर एक-एक घोड़ा खड़ा कर कागज दिल्ली स्टेशन पर फतहसिंह तक पहुंचाया गया। महाराणा फतहसिंह ने कहा कि अगर यह कागज दिल्ली में मिल जाता तो वे दिल्ली ही न आते। उन्होंने पेट दर्द का बहाना बना कर दिल्ली में होते हुए भी दिल्ली दरबार नहीं पहुंचे। किताब में उल्लेख है कि जॉर्ज पंचम को दरबार में महाराणा मेवाड़ की खाली कुर्सी बार-बार खटकती रही। वह कुुर्सी आज भी उदयपुर के सिटी पैलेस म्यूजियम में रखी हुई है।
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