35 साल पहले आई थी अंतिम तोप
सेना को 1987 में स्वीडन से बोफोर्स तोप मिली थी। तोप में खरीद का विवाद होने के बाद सेना ने कोई नई तोप नहीं खरीदी। कुछ समय पहले के-9 थंडर वज्र के लिए कोरिया से करार हुआ था।बोफोर्स ने ऐसे किया कमाल
करगिल क्षेत्र लद्दाख का दूसरा बड़ा शहर है, जहां तापमान -60 डिग्री तक चला जाता है। यहां ऊंचाई 5500 मीटर तक है। मई 1999 में पाकिस्तानी सेना और आतंकवादी यहां घुसपैठ कर गए थे और ऊंचाई से गोले बरसा रहे थे। तब आर्मी ने बोफोर्स तोप की 4 रेजिमेंट यानी 72 तोपें लगाई, जिन्होंने दिन-रात फायर करके घुसपैठियों को खदेड़ा और पैदल सेना के लिए रास्ता बनाया। बोफोर्स तोप 90 डिग्री तक 35 किलोमीटर तक मार कर रही थी और 12 सैकण्ड में तीन गोले दागे जा रहे थे। कुल मिलाकर 155 एमएम की इस तोप से 69 हजार 800 गोले दागे गए।धनुष की ताकत बोफोर्स से अधिक
धनुष 155 गुणा 45 एमएम कैलिबर की तोप है, जबकि बोफोर्स 155 गुणा 39 एमएम की है। धनुष की स्ट्राइक रेंज 38 किलोमीटर है। अधिकतम यह 47 किलोमीटर तक फायर कर सकती है, जबकि बोफोर्स 35 किलोमीटर तक ही फायर करती है। यह बोफोर्स तोप से 11 किलोमीटर अधिक दूर तक निशाना लगा सकती है। इसके जरिए रात में भी निशाना लगाया जा सकता है। धनुष के 81 फीसदी पुर्जे भारत में ही बने हैं। करगिल युद्ध के समय बोफोर्स तोप गेमचेंजर रही थी। सेना ने इस तोप के 4 रेजिमेंट वहां तैनात किए थे। बोफोर्स तोप द्वारा शत्रुओं को न्यूट्रीलाइज करने के बाद ही आर्मी आगे बढ़नी शुरू हुई थी। अब इसका स्थान धनुष तोप ले रही है।
- राणुसिंह राठौड़, रिटायर्ड मेजर जनरल (करगिल युद्ध के समय ऑपरेशन लॉजिस्टक में तैनात थे।)
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