बिसाऊ की मूक रामलीला का कोई पात्र संवाद नहीं बोलता। शाम के उजाले में कलाकार चेहरे पर मुखौटे लगाकर खुले मैदान में ढोल-तासों की आवाज पर नृत्य की मुद्रा में लीला का मंचन करते हैं। यह रामलीला पंद्रह दिन तक चलती है। पात्रों की पोशाक भी स्वरूप के अनुकूल होती है। राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न व सीता का सलमें-सितारों से श्रृंगार किया जाता है।
•Sep 07, 2022 / 01:57 pm•
युगलेश कुमार शर्मा
बिसाऊ की मूक रामलीला में राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न व सीता को छोड़कर सभी पात्र चेहरे पर मुखौटे लगा कर रखते हैं। यह रामलीला पंद्रह दिन तक चलती है। नगर के बाजार में सड़क पर रामलीला का मंचन होता है। पास में ही रामलीला की हवेली है, जहां सभी पात्र तैयार होकर रामलीला मंचन के स्थान पर पहुंचते हैं। शाम के उजाले में खुले मैदान में ढोल-तासों की आवाज पर नृत्य की मुद्रा में लीला का मंचन किया जाता है।
राजा जनक ने अपनी पुत्री सीता का विवाह करने के लिए स्वयंवर का आयोजन किया। उन्होंने देश-विदेश के राजाओं को आमंत्रित किया। कोई भी राजा शिव जी के धनुष को उठाना तो दूर कोई हिला तक न सका। बाद में विश्वामित्र की आज्ञा पाकर श्रीराम ने धनुष का खंडन कर दिया।
भगवान परशुराम को जब शिव धनुष भंग होने की जानकारी मिली तो वे क्रोधित हो गए। इस दौरान परशुराम और लक्ष्मण के बीच तीखे संवाद हुए। परशुराम बने भामाशाह कमल पौद्दार।
मूक रामलीला में भगवान परशुराम का क्रोध दर्शकों पर भी बरसता है। लेकिन रामलीला देखने आए दर्शक उनके क्रोध को सहज भाव से स्वीकार करते हैं। परशुराम की भूमिका में राजेश जलधारी।
रामविवाह का यह मनोरम दृश्य है। इसमें लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न के साथ शिवजी, गणेशजी, ब्रह्माजी सहित अन्य देवी-देवता नजर आ रहे हैं।
सीता हरण के बाद भगवान राम की आज्ञा पाकर हनुमानजी माता सीता की खोज में लंका पहुंचते हैं। सीता माता के लंका में होने की जानकारी मिलने पर वे रावण के दरबार में पहुंचते हैं और भरी सभा में राक्षसों को ललकारते हैं।
हनुमान जी रावण को समझाते हैं कि वह माता सीता को छोड़ दें और भगवान राम की शरण में चला जाए। लेकिन रावण नहीं मानता और हनुमानजी की पूंछ में आग लगाने की आज्ञा देता है। पूंछ में आग लगाने पर हनुमान जी का क्रोध बढ़ जाता है और वे सोने की लंका को जलाकर राख कर देते हैं।
रावण के आदेश पर कुंभकरण को जगाने के लिए ढोल-ढमाकों सहित नाना प्रकार की ध्वनि की जाती है। काफी मशक्कत के बाद कुंभकरण की नींद खुलती है। भोजन के बाद कुंभकरण मटकों से मदीरा पान करता है और एक-एक कर अपने सिर से सभी मटकों को फोड़ते हुए युद्ध के मैदान में उतरता है।
रावण की आज्ञा मानकर कुंभकरण युद्ध करने पहुंचता है। इस दौरान वह मुंह से आग के गोले छोड़ता है और राम सेना को डराने की कोशिश करता है। इसके बाद भगवान राम और कुंभकरण के बीच घमासान युद्ध होता है। आखिर में भगवान राम के हाथों कुंभकरण मारा जाता है।
एक-एक कर सभी राक्षसों के मारे जाने से रावण चिंतित हो उठता है और मेघनाद को युद्ध के लिए भेजता है। मेघनाद एक ऐसा योद्धा था जिसे हराना बहुत मुश्किल था। युद्ध के दौरान वह एक बार लक्ष्मण जी को मुर्छित कर देता है। बाद में दोनों में भयंकर युद्ध होता है। अंत में लक्ष्मण जी की शक्ति से मेघनाद मारा जाता है।
लंका में माता सीता के पास राक्षसों का कड़ा पहरा था। ऐसे में माता सीता को भूख लगने पर वे क्या करेंगी, इसको लेकर देवराज इंद्र ने उनकी मदद की। उसी रात भगवान ब्रह्मा के कहने पर देवराज इंद्र ने सभी राक्षसों को मोहित कर के सुला दिया। फिर देवी सीता को खीर दी। वो खीर खाने के बाद उन्हें कभी भूख और प्यास नहीं लगी।
मूक रामलीला में युद्ध के अंतिम दिन राम और रावण की सेना में भीषण संग्राम का मंचन किया जाता है। रावण इस दौरान अपनी माया से वानर सेना को भयभीत करता है। वह अपने कई मायावी रूप बनाकर राम से युद्ध करता है। आखिर में भगवान राम का एक तीर रावण के नाभिकुंड में जाकर लगता है और वह धराशायी हो जाता है। इसके बाद बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक रावण के पुतले का दहन किया जाता है।
मूक रामलीला के अंतिम दिन भगवान राम 14 वर्ष का वनवास पूरा कर अयोध्या लौटते हैं तो नगर में जगह-जगह उनका स्वागत होता है। बिसाऊ के बीच बाजार में जब राम और भरत का मिलन होता है तो श्रद्धालुओं की आंखें नम हो जाती है। बाद में भगवान राम का राज्याभिषेक किया जाता है और आरती उतारी जाती है।
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