झाबुआ

अजीब है ये परंपरा : मौसम का हाल जानने यहां दी जाती है नवजात भैंसे की बलि, सिर काटकर पहाड़ी से लुढ़काते हैं धड़

यहां मौसम का मिजाज समझने के लिए लोग भैंसे की बलि देते हैं। अब इसे परंपरा कहेंगे या अंध्विश्वास ? ये आप ही सुनिश्चित करें।

झाबुआOct 23, 2022 / 10:08 pm

Faiz

अजीब है ये परंपरा : मौसम का हाल जानने यहां दी जाती है नवजात भैंसे की बलि, सिर काटकर पहाड़ी से लुढ़काते हैं धड़

झाबुआ. भले ही आ भारत देश ने विकास की दौड़ में अनैकों उपलब्धियां हासिल कर ली हों। देशवासियों ने पढ़ लिखकर कई रूड़ीवादी परंपराओं को गलत ठहराते हुए उनका बहिष्कार कर दिया हो, लेकिन अब भी सवा अरब से अधिक आबादी वाले इसे देश में कई परंपराएं ऐसी हैं, जो सोचने पर मजबूर कर देती हैं। ऐसी ही एक अजीबो गरीब परंपरा मध्य प्रदेश के झाबुआ में भी बड़ी प्रसिद्ध है। यहां मौसम का मिजाज समझने के लिए लोग भैंसे की बलि देते हैं। अब इसे परंपरा कहेंगे या अंध्विश्वास ? ये आप ही सुनिश्चित करें।

सदियों से चली आ रही भैंसे की बलि देने की परंपरा से यहां के लोग पूरे साल में होने वाली बारिश का अंदाजा लगाते हैं। हर साल झाबुआ के चुई गांव में दिवाली के एक दिन पहले इस परंपरा को निभाते हैं, जिसमें ऊंची पहाड़ी पर स्थित कुल देवता को भैंसे की बलि दी जाती है। बल् कि बाद भैंसे का धड़ पहाड़ी से लुढ़कते हुए जितना नीचे पहुंचता है, उसी अनुपात में बारिश की संभावना लगाई जाती है।

 

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देश के कई राज्यों से परंपरा देखने आते हैं श्रद्धालु

झाबुआ जिला मुख्यालय से करीब 35 किलोमीटर दूर चुई गांव में हजारों की तादाद में आदिवासी समाज के लोग जमा होकर इस परंपरा को निभाते हैं। यहां वाग डूंगर की 300 फिट ऊंची पहाड़ी है। यहां आदिवासी के लोक देवता वगेला कुंवर देव का प्रसिद्ध स्थान है। ये स्थान हजारों लोगों की आस्था का प्रतीक भी है। यहां हर साल सिर्फ मध्य प्रदेश ही नहीं, बल्कि गुजरात, राजस्थान समेत अन्य राज्यों से भी हजारों की संख्या में श्रद्धालु इस अनोखी परंपरा को देखने पहुंचते हैं।

 

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अच्छी बारिश के बारे में जानने के लिए बलि

आपको बता दें कि, इस परंपरा को निभाने के दौरान पुजारी कीर्तन करते हैं। देवता का आह्वान करते हैं। इस बीच दर्शन करने, मन्नत मांगने वाले लोगों का जमावड़ा लगता है। पूजा संपन्न होते ही एक नवजात भैंसे की बलि दी जाती है। भैंसे का सिर धड़ से अलग कर के सिर्फ धड़ को पहाड़ी के नीचे लुढ़का दिया जाता है। माना जाता है कि, अगर धड़ बीच में कहीं रुक जाता है तो बारिश कम होगी और अगर रुक-रुककर धड़ लुढ़कता रहता है तो इससे रुक-रुककर बारिश की संभावना जताई जाती है। लेकिन पेड़ की इस बाधा को पार कर इस बार धड़ पहाड़ी से तेजी से नीचे की ओर लुढ़क गया, जिससे लोगों द्वारा ये कयास लगाए गए हैं कि, आगामी सीजन में भी बारिश अच्छी होगी।


यहां लगता है मेला

इस परंपरा का हिस्सा बनने के लिए हजारों श्रद्धालु पहुंचते हैं। लोगों का मान्यता भी है कि हर साल भविष्यवाणी सच साबित होती है। इसे आस्था कहे या अंधविश्वास यहां हजारों लोग पहुंचते हैं। मेले जैसा माहौल रहता है। आसपास के इलाके में बड़ी संख्या में दुकाने भी लगाई जाती हैं। यहां आने वाले लोग खरीदारी भी करते हैं। पुलिस की मौजूदगी में इस परंपरा को संपन्न किया जाता है, ताकि परंपरा के बीच कानून व्यवस्था भी बनी रहे।

 

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