डॉ. सुशील ने बताया कि स्पाइनल कॉर्ड इंजरी की भयावहता इस बात से लगाई जा सकती है कि लोगों में होने वाले पैरालिसिस के मामलों में दूसरा सबसे बड़ा कारण स्पाइनल कॉर्ड इंजरी है। देश में पैरालिसिस के कुल केसों में 27 प्रतिशत कारण रीढ़ की चोट है। इनमें ज्यादातर केस कमर के नीचे के लकवे के होते हैं।
डॉ. हिमांशु गुप्ता ने बताया कि देश में 50 लाख लोगों को स्कोलियोसिस (रीढ़ के टेढ़े होने) की समस्या है। पांच प्रतिशत बच्चों में रीढ़ के टेढ़े होने की समस्या पाई जा रही है। अगर व्यक्ति का वजन अधिक है तो स्कोलियोसिस होने का खतरा पांच गुना बढ़ जाता है। डॉ. हिमांशु ने बताया कि स्पाइन से जुड़ी समस्याओं के लिए अब सर्जरी काफी आसान हो गई हैं। स्पाइन की महीन नसों पर दबाव न पड़े, इसका विशेष ध्यान रखा जाता है लेकिन फिर भी जटिलताओं का खतरा रहता है। अब इंट्राऑपरेटिव न्यूरो मॉनिटरिंग तकनीक से इस जटिलता को बेहद कम किया जा सकता है। इस तकनीक से सर्जरी के दौरान ही सर्जन को लाइव डेटा मिलते रहता है कि वे स्पाइन के अनावश्यक हिस्से को नहीं छेड़ रहे।