गांवों में तो अधिकतर घरों में एक से बढ़कर एक मांडणे नजर आते थे। गांवों तक सीमित परंपरा शहरों सहित ग्रामीण कस्बों में मांडणे की कला वर्तमान समय में विलुप्त होने लगी है। गांवों में भी अब कुछ घरों में ही मांडणे नजर आते हैं। यह कला अब बुजुर्ग महिलाओं तक ही सीमित रह गई है। घरों में बुजुर्ग महिलाएं ही मांडणे बनाती हैं। मांडणे का स्थान रंग-बिरंगे व सुंदर डिजाइनों के स्टिकर्स ने ले लिया है। बाजार में एक से बढ़कर एक कम्प्यूटर डिजाइन के स्टीकर उपलब्ध हैं। दीपावली पर घरों को सजाने के लिए लोग इनकी खरीदारी जरूर करते हैं।
दीपावली पर जहां पक्के घरों पर साफ-सफाई के बाद रंग-रोगन होता है। वहीं कच्चे घरों में भी महिलाएं मिट्टी लगाकर लिपाई-पुताई करती हैं। एक समय था जब मकानों में खासकर कच्चे घरों पर रंग-रोगन एवं लिपाई करने के बाद महिलाएं अपने हाथों से घर के दरवाजों व बरामदों के सामने सुंदर मांडणे बनाती थी। पक्के घरों में मिट्टी के रंगों के स्थान पर वारनेस से मांडणे बनाए जाते थे। इनमें मोर, पंख, फूल समेत कई तरह की कलाकृतियां अपने हाथों से बनाती थी।
दीपावली पर्व पर कच्चे घरों व मकानों में बनाए जाने वाले मांडणे लुप्त होने लगे हैं। युवा पीढ़ी काम-धंधे की भागदौड़ के चलते पुरानी परंपराओं से मुंह मोडऩे लगी है।
सुरज्ञान चौधरी, सरपंच, ग्राम पंचायत, मंडोर
सुनीता चौधरी, गृहिणी