अमृत हुसैन विदेशी धरती पर शास्त्रीय संगीत को पश्चिमी संगीत से जोड़ने की मुहिम भी चला रहे हैं। जिसके तहत वें विदेशी युवाओं को तबला वादन की बारीकियां भी सीखा रहे हैं। वें सिर्फ तबला साधक ही नहीं बल्कि राइटर और म्यूजिक की धुनें भी तैयार करते हैं। उन्होंने विदेशी मंचों पर अपनी कई कंपोजिशन के जरिए श्रोताओं की वाहवाही लूटी है। साथ ही सोलो म्यूजिक और ग्रुप बैंड में संगीत के जरिए सफलता के झंडे गाड़े हैं। करीब 21 साल पहले जयपुर से शुरू हुआ उनके संगीत का सफर अब तक करीब 100 देशों तक पहुंच चुका है।
अमृत हुसैन को अपनी कला साधना के लिए वैसे तो कई अनगिनत अवॉर्ड से सम्मानित किया जा चुका है। उन्हें 2015 में पौलेंड गवर्नमेंट की ओर से पॉलिश फ्रेडरिक ग्रैमी अवॉर्ड और 2018 में मोरक्को सरकार की ओर से यूनेस्को से प्रमाणित अल फारबी अवॉर्ड से भी सम्मानित किया जा चुका है। इसके अलावा 2004 के ओलम्पिक गेम्स के दौरान ग्रीस में आयोजित कार्यक्रम में भी परफॉर्म करने का सौभाग्य प्राप्त है। अमृत हुसैन कहते हैं कि मुझे संगीत विरासत में मिला है। हमारे घराने में 7 पीढ़ियों से संगीत की सेवा की जा रही है।