जयपुर। राजस्थान गर्वनमेंट हेल्थ स्कीम (आरजीएचएस) के तहत इलाज पैकेज की संशोधित दरों को लेकर शुरू हुए विवाद का खमियाजा लाखों सरकारी कर्मचारियों और पेंशनर्स को उठाना पड़ रहा है। वित्त विभाग की ओर से 26 जुलाई को संशोधित पैकेज दरें जारी करने के बाद यह विवाद शुरू हुआ। हैरत की बात यह है कि निजी अस्पतालों ने योजना के तहत करीब 20 दिन से मरीजों का मेडिकल मैनेमेंट के तहत इलाज बंद किया हुआ है, लेकिन सरकार की तरफ से विवाद को सुलझाने की कोई पहल सामने नहीं आई है।
संशोधन में पांच दिन के चिकित्सा प्रबंधन पैकेज में प्रावधान किया गया है कि मरीज सामान्य वार्ड में भर्ती हो या वेंटिलेटर वाले आईसीयू में, उसे दवाई केवल एक हजार रुपए प्रतिदिन की ही दी जा सकेगी। हालांकि अधिक खर्च होने पर उसके लिए सरकार से अनुमति ली जा सकती है। इस आदेश को बेतुका बताते हुए निजी अस्पतालों ने योजना के तहत इलाज बंद कर दिया। अस्पतालों का तर्क है कि वेटिलेटर पर भर्ती मरीज के लिए इलाज की सीमा तय करना और उसके बाद के लिए अनुमति लेने के प्रावधन से इलाज में देरी होगी। ऐसा होगा तो मरीज की जान पर संकट आएगा और परिजनों को समझाना मुश्किल हो जाएगा और लापरवाही का आरोप अस्पताल पर लगाया जाएगा।
जहां बात की, वहीं मिला इनकार एक मरीज को मल्टीपल बीमारियां के कारण परिजनों ने आरजीएचएस के तहत उपचार के लिए शुक्रवार को एक निजी अस्पताल में संपर्क किया। वहां फिलहाल इस योजना से इलाज के लिए मना कर दिया गया। उसके बाद दूसरे बड़े अस्पताल में संपर्क किया गया। वहां भी सिर्फ सर्जिकल इलाज ही किए जाने की बात कहकर इनकार कर दिया गया।
खुद के पैसे खर्च करो, या सरकारी ही सहारा राइट टू हेल्थ के बाद अब राजस्थान गवर्नमेंट हेल्थ स्कीम (आरजीएचएस) मरीजों का मर्ज बढ़ा रही है। मजबूरन उन्हें निजी अस्पतालों में या तो पैसे खर्च करने पड़ रहे हैं या एसएमएस अस्पताल, जयपुरिया समेत अन्य सरकारी अस्पतालों में भर्ती कराना पड़ रहा है। उनके परिजन निजी व सरकारी अस्पताल के बीच चक्कर लगाने को मजबूर है।
नित नए नियमों से हो रहा जनता को नुकसान पिछले 20 दिन से करीब करीब सभी कॉरपोरेट और बड़े अस्पताल योजना के तहत मेडिकल केस नहीं ले रहे हैं। इस दौरान सरकार के किसी अधिकारी ने वार्ता की कोई पहल नहीं की। अधिकारी योजना के तहत इलाज के आंकड़े दिखाकर सरकार को गुमराह कर सकते हैं, लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि बेतुके नियमों के कारण अधिकांश अस्पताल योजना में मेडिकल केस नहीं लेने को मजबूर हैं, जिसके कारण परेशानी मरीजों को भुगतनी पड़ रही है।
डॉ.विजय कपूर, अध्यक्ष, प्राइवेट हॉस्पिटल एंड नर्सिंग होम्स सोसायटी
डॉ.विजय कपूर, अध्यक्ष, प्राइवेट हॉस्पिटल एंड नर्सिंग होम्स सोसायटी