साथ ही जातिगत जनगणना का मुद्दा उछालकर ओबीसी वर्ग को भी साधने का प्रयास किया। कांग्रेस के इस प्रचार अभियान का कमोवेश हर सीट पर असर नजर आया। कांग्रेस सेना में अग्निवीर भर्ती को भी प्रभावी मुद्दा बनाने में कामयाब रही। इसी वजह से शेखावाटी और नागौर में बड़ी कामयाबी मिली।
छह माह में ही बदल गया माहौल
भाजपा छह माह पहले ही विधानसभा चुनाव जीतकर प्रदेश की सत्ता पर काबिज हुई थी। लेकिन लोकसभा चुनाव में पार्टी आशा के अनुरूप प्रदर्शन नहीं कर सकी। वहीं कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव की हार से उबरते हुए उम्मीद से ज्यादा अच्छा प्रदर्शन किया। कांग्रेस ने तीन सीटें सहयोगी दलों के लिए छोड़ी थी। इन तीनों ही सीटों पर नागौर से आरएलपी के हनुमान बेनीवाल, सीकर से माकपा के अमराराम और बांसवाड़ा से बीएपी के राजकुमार रोत ने बाजी मारी है। भाजपा से टिकट कटने से नाराज होकर कांग्रेस के टिकट से चूरू से चुनाव उतरे राहुल कस्वां ने जीत दर्ज की है। कांग्रेस के चुनाव मैदान में उतारे विधायक हरीश मीना, मुरारीलाल मीना और बृजेन्द्र ओला जीते है जबकि विधायक ललित यादव को हार का सामना करना पड़ा।
ऐसे में उन्हें बागीदौरा सीट से इस्तीफा देना पड़ा। मालवीया को भाजपा ने डूंगरपुर-बांसवाड़ा लोस सीट से प्रत्याशी बनाया लेकिन यहां भी उन्हें बीएपी से हार का सामना करना पड़ा। ऐसे में अब मालवीय के हाथ से विधानसभा सीट भी चली गई और लोकसभा का चुनाव भी हार गए।
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बागीदौरा उपचुनाव में BAP ने मारी बाजी
कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हुए महेंद्रजीत सिंह मालवीया के इस्तीफे से खाली हुई बागीदौरा विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में बीएपी ने जीत दर्ज की है। लोकसभा चुनाव के साथ ही इस सीट का भी मंगलवार को रिजल्ट घोषित किया गया। बीएपी के जयकृष्ण पटेल ने भाजपा के सुभाष तंबोलिया को 51,434 वोटों से हराया बागीदौरा सीट आदिवासी नेता महेंद्रजीत सिंह मालवीया का गढ़ रही है। मालवीया 2008 से 2023 तक लगातार यहां से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीते हैं। लोकसभा चुनाव की घोषणा से पहले मालवीया कांग्रेस छोड़कर भाजपा में चले गए। ऐसे में उन्हें बागीदौरा सीट से इस्तीफा देना पड़ा। मालवीया को भाजपा ने डूंगरपुर-बांसवाड़ा लोस सीट से प्रत्याशी बनाया लेकिन यहां भी उन्हें बीएपी से हार का सामना करना पड़ा। ऐसे में अब मालवीय के हाथ से विधानसभा सीट भी चली गई और लोकसभा का चुनाव भी हार गए।