टिकट चयन से लेकर प्रचार तक का सारा जिम्मा
सीएम भजनलाल शर्मा और मदन राठौड़ के ऊपर ही रहा। मुख्यमंत्री हर सीट पर दो-दो बार गए और मदन राठाैड़ तो सातों सीटों पर दौरे कर चुके थे। पूर्व सीएम वसुंधरा राजे ने इस चुनाव से पूरी तरह से दूरी बनाए रखी। बगावत को रोकने से लेकर रणनीति बनाने तक का सारा काम सीएम भजनलाल के नेतृत्व में पूरी मजबूती से किया गया। बगावत को जिस तरह से संभाला गया, वह भाजपा कार्यकर्ताओं में चुनाव के आखिरी तक उत्साहित कर गया।
खोने को कम, पाने को बहुत कुछ
सात सीटाें में से भाजपा के पास एक सलूम्बर सीट ही थी। यह सीट भाजपा विधायक के निधन की वजह से रिक्त हुई थी। इसके अलावा बाकी की छह सीटें भाजपा के खातेे में नहीं है। ऐसे में भाजपा के पास खोने को तो बहुत ज्यादा नहीं है, लेकिन पाने को बहुत कुछ है। यदि पार्टी तीन-चार से ज्यादा सीटें जीत जाती है तो इससे सबसे बड़ा फायदा मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा को होगा। शर्मा पहली बार ही सीएम बने हैं, ऐसे में भाजपा को ज्यादा सीटों पर जीत मिलती है तो उनकी पार्टी के अंदर स्वीकार्यता का ग्राफ बढ़ेगा और दिल्ली में भी यह संदेश जाएगा कि भजनलाल शर्मा की पकड़ मजबूत हो रही है।
किरोड़ी लाल मीना की साख भी दांव पर
सात सीटों में से एक सीट दौसा की वजह से कृषि मंत्री
किरोड़ी लाल मीना की साख भी दांव पर लगी हुई है। दौसा से भाजपा ने कृषि मंत्री के भाई जगमोहन को टिकट दिया है। पूरे चुनाव में ऐसे ही लग रहा था जैसे किरोड़ी लाल मीना ही चुनाव लड़ रहे हैं।