ऐसे हुई स्थापना
मान्यता के अनुसार सन् 1765 में वृंदावन के ललित कुंज स्थित ललित सम्प्रदाय के महात्मा बंशी अलिजी राधाजी को आठ सखियों के साथ जयपुर लाए। बंशी अलि ने राधाजी को कृष्ण की बंशी का अवतार मान बरसों तक कठोर तपस्या की, जिसके बाद महाराजा सवाई जयसिंह के दूसरे पुत्र माधोसिंह ने राधाजी की सखियों विशाखा, चंपकलता, रंगदेवी, चित्रलेखा, इंदुलेखा, सुदेवी, ललिता और तुंगविद्या को लाए। इन सखियों ने राधाजी को अपना पति मान खुद को सौभाग्यवती माना। मंदिर की खातिर रियासत ने 7 गांवों की जागीर भी दी, जिसके बाद लाडली की भक्त रही माधोसिंह द्वितीय की महारानी जादूनजी ने मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया। यह भी पढ़ें