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जयपुर

राधारानी की 8 सखियों संग बना निराला मंदिर, यहां रात ढाई बजे होती है आरती

Special Temple: बंशी अलि ने राधाजी को कृष्ण की बंशी का अवतार मान बरसों तक कठोर तपस्या की, जिसके बाद महाराजा सवाई जयसिंह के दूसरे पुत्र माधोसिंह ने राधाजी की सखियों विशाखा, चंपकलता, रंगदेवी, चित्रलेखा, इंदुलेखा, सुदेवी, ललिता और तुंगविद्या को लाए।

जयपुरSep 11, 2024 / 10:38 am

Akshita Deora

Radha Ashtami 2024: आज राधाष्ठमी पर राजस्थान की राजधानी में बने प्राचीन राधारानी मंदिर के बारे में जानिए। लाडली राधाजी की आठ सखियों के संग 225 साल पुराना एक मंदिर जयपुर के परकोटे के रामगंज बाजार में स्थित है। बताया जाता है कि राधारानी के ऐसे अद्भुत मंदिर की स्थापना सबसे पहले जयपुर में ही हुई थी।

ऐसे हुई स्थापना

मान्यता के अनुसार सन् 1765 में वृंदावन के ललित कुंज स्थित ललित सम्प्रदाय के महात्मा बंशी अलिजी राधाजी को आठ सखियों के साथ जयपुर लाए। बंशी अलि ने राधाजी को कृष्ण की बंशी का अवतार मान बरसों तक कठोर तपस्या की, जिसके बाद महाराजा सवाई जयसिंह के दूसरे पुत्र माधोसिंह ने राधाजी की सखियों विशाखा, चंपकलता, रंगदेवी, चित्रलेखा, इंदुलेखा, सुदेवी, ललिता और तुंगविद्या को लाए। इन सखियों ने राधाजी को अपना पति मान खुद को सौभाग्यवती माना। मंदिर की खातिर रियासत ने 7 गांवों की जागीर भी दी, जिसके बाद लाडली की भक्त रही माधोसिंह द्वितीय की महारानी जादूनजी ने मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया।
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राधाष्टमी पर रहता है ऐसा माहौल

राधाष्टमी पर सुबह से शाम तक मंदिर में शहनाई बजती रहती है। भक्तिमय माहौल में बधाइयां गाई जाती है। लाडलीजी को पंचामृत, सहस्त्रधारा से स्नान करवा कर छायादान के बाद लाडलीजी को हल्का गरम दूध, मक्खन, मलाई मिश्री का भोग लगाया जाता है। धूप आरती में राधा के चरणों के दर्शन कराते हैं। महंत ने बताया कि राधा अष्टमी पर छोंके हुए चने, फल, मावा और बेसन के मोदकों से भोग लगता हैं और रात को ढाई बजे आरती होती है।

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