चार साल पहले 13 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए खास यू-ट्यूब किड्स लॉन्च किया जो खास बच्चों के लिए वीडियो फिल्टर करता है। लेकिन इस ऐप को भी बच्चों को व्यसनी, नीरस और सुरक्षित नहीं होने के कारण आलोचना का सामना करना पड़ा है। दरअसल, अधिकतर बच्चे इस साइट का उपयोग ही नहीं करते। वे सीधे यू-ट्यूब डॉट कॉम को acess करते हैं जहां वे बच्चों का शोषण करने वाले अपराधियों के सीधे निशोन पर होते हैं। यू-ट्यूब के दुनिया में 2 अरब से ज्यादा सक्रिय मासिक यूजर हैं। आलोचकों का कहना है कि इस बात की कोई व्यवस्था नहीं की गई है कि इन बच्चों को मुख्य साइट पर जाने से प्रतिबंधित किया जा सके। क्योंकि ज्यादातर 13 साल का होने से पहले ही यू-ट्यूब डॉट कॉम का उपयोग शुरू कर देते हैं। भारत यू-ट्यूब का सबसे बड़ा बाजार है लेकिन यहां भी किड्स साइट का इस्तेमाल न के बराबर होता है। बीते कुछ सप्ताह में कंपनी पर युवाओं और किशोरों में कट्टरता और समलैंगिकों का बच्चों का उत्पीडऩ करने की घटना को नजरअंदाज करने जैसे आरोप भी लगे हैं।
भारत यू-ट्यूब का सबसे बड़ा बाजार 97 फीसदी किशोर-किशोरियां इसका उपयोग करते हैं। मार्केट रिसर्च फर्म इनसाइट स्ट्रेटजी ग्रुप ने हाल ही एक सर्वे कर बच्चों के ऑनलाइन व्यवहार के बारे में बताया। पोल ने यू-ट्यूब की किड्स ऐप और मुख्य साइट के बीच ज्यादा अंतर नहीं किया क्योंकि अधिकतर अभिभावक दोनों में अंतर को नहीं समझते थे। 5 से 12 साल के बच्चों ने खेलने, fortenite वीडियो गेम और इंस्टाग्राम की बजाय यू-ट्यूब पर ज्यादा समय बिताना स्वीकार किया। वहीं 7 से 12 साल के बच्चों ने कहा कि वे चैनल के सीमित कंटेंट से उकता गए थे इसलिए मुख्य साइट को acess करने लगे। लॉन्च होने के तीन महीने से भी कम समय में बच्चों और उपभोक्ता संरक्षण समूहों को साइट पर अनुचित सामग्री मिली। इसमें स्पष्ट यौन भाषा और बच्चों के प्रति यौन भावना (पीडोफिलिया) दर्शाते चुटकुले शामिल हैं।
उपयोगकर्ता पर डाल रही जिम्मेदारी
दरअसल, यू-ट्यूब की आलोचना का एक बड़ा कारण इसका अपनी सामग्री की जिम्मेदारी लेने से बचना भी है। साइट किसी भी अनुचित या आपत्तिजनक वीडियो सामग्री से अपने बच्चों को प्रबंधित करने के लिए माता-पिता पर ही जिम्मेदार डाल रहा है। जबकि अधिकाँश माता-पिता इसमें खुद को असहाय महसूस करते हैं। कंपनी की एल्गोरिद्म भी कुछ ऐसी है कि वह साइट पर क्लिक होन वाली हर चीज, और सबसे ज्यादा सर्च की जाने वाली सामग्री को ऑटो प्ले कर खुद ही बढ़ावा देती है। इससे अश्लील और आपत्तिजनक सामग्री तक बच्चों की पहुंच और आसान हो जाती है। लेकिन यह ऐसी सामग्री को बढ़ावा नहीं देता जो बच्चों के मानसिक और सामाजिक विकास में सहयोगी हो।