फलोदी सट्टा बाजार में पहले बरसात पर चर्चा होती थी और यहां के लोग आकाश देखकर बारिश होने का अनुमान लगा देते थे और इसी के अनुसार ही अपनी खेती-किसानी करने का निर्णय भी करते थे। करीब तीन दशक पहले कुछ लोगों के मुम्बई में सम्पर्क हुए और वहां से चुनावों, क्रिकेट व फुटबॉल मैच और विधानसभा, लोकसभा, पंचायत समिति व नगर परिषद के चुनावों पर भी सट्टा करने की परम्परा का जन्म हुआ। इसमें भी सटीक आकलन से फलोदी के सट्टा बाजार पर लोगों का भरोसा जमने लगा।
बदलते रहते हैं भाव
सट्टा बाजार में सीटों को लेकर होने वाले सौदों का अपना गणित है। राजनीतिक दलों और प्रत्याशियों की जीत के भाव अलग-अलग कारणों के चलते बदलते रहते हैं। अभी के भाव चार चरण पूरे होने के बाद के हैं। तीन चरण और होने के बाद चुनावी आकलन में सीटों की संख्या घट-बढ़ सकती है।मतगणना के दिन जुटेगी भीड़
लोकसभा चुनाव में अधिक दिलचस्पी नहीं होने से कोई बड़े दांव नहीं लग रहे है, फिर भी मतगणना से एक दिन पूर्व व मतगणना के समय यहां के परम्परागत सदर बाजार स्थित गांधी चौक में लोगों का जमघट लगने और अपनी पसंद के नेता पर दांव लगने के अनुमान लगाए जा रहे हैं।राजशाही बाजार बना सट्टा बाजार
आजादी से पहले जब पाकिस्तान भारत में ही शामिल था। तब फलोदी का व्यापार पाकिस्तान के सिंध प्रान्त तक था जो व्यापार यहां के राजशाही बाजार वर्तमान नाम सदर बाजार से ही चलता था। और यही कारण है कि यह बाजार आज भी हेरिटेज लुक लिए हुए है, पूर्व में इस बाजार को राजशाही बाजार (व्यापार मण्डी) के नाम से जाना जाता था। यहां घी, तेल, अनाज, नमक, मावा व नमक आदि का बड़ा व्यापार होता था, लेकिन आजादी के बाद सिन्ध से व्यापार बंद हो गया। बाद में राजशाही बाजार सदर बाजार और फिर सट्टा बाजार में परिवर्तित हो गया।बीकानेर और सीकर से आते हैं भाव
फलोदी सट्टा बाजार में वर्तमान में लोकसभा चुनाव को लेकर निकलने वाले भाव फलोदी के सट्टेबाज नहीं निकालते हैं, बल्कि बीकानेर व सीकर से भाव निकलते हैं, जिसे यहां पर लागू किया जाता है। यहां की बेबाक जुबानी के कारण फलोदी सट्टा बाजार देश की सुर्खियों में है, जबकि यहां बारिश को छोड़कर किसी के भी भाव फलोदी में तय नहीं होते हैं। यह भी पढ़ें