जयपुर

राजस्थान में 1 जुलाई से बदल जाएंगे ब्रिटिश काल के ये कानून, अब वॉट्सऐप-टेलीग्राम से भी दर्ज करा सकेंगे FIR

राजस्थान में 1 जुलाई से ब्रिटिश काल के पुराने कानून बदलने जा रहे है।

जयपुरJun 28, 2024 / 09:19 am

Lokendra Sainger

शैलेन्द्र अग्रवाल। राजस्थान में एफआईआर के लिए अब थाने में जाकर बहस की करने की जरूरत नहीं होगी। आप वॉट्सऐप और टेलीग्राम या ई- मेल जैसे माध्यम से भी एफआईआर दर्ज करा सकेंगे। इसी तरह अब थाने से यह कहकर भी आपको कोई टरका नहीं सकेगा कि संबंधित थाने में जाकर एफआईआर दर्ज करवाएं, नए कानून में जीरो एफआईआर का प्रावधान जोड़कर क्षेत्राधिकार की चिंता बिना किसी भी थाने में रिपोर्ट दर्ज करवा सकेंगे।
1 जुलाई से भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की जगह भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस), दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की जगह भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (आईईए) की जगह भारतीय साक्ष्य अधिनियम (बीएसए) ले लेंगे। अब एफआईआर को लेकर कई स्पष्ट प्रावधान किए गए हैं, तो कुछ पुराने प्रावधानों को भी मजबूत बनाया है।

जेल में भीड़ होगी कम, कम्युनिटी सर्विस की सजा

पहली बार ‘कम्युनिटी सर्विस’ को दंड के रूप में बीएनएस की धारा 4 में शामिल किया है, ताकि जेलों की भीड़ कम हो। इसमें 6 छोटे अपराधों के लिए प्रावधान किया है, जैसे 5 हजार रुपए तक की चोरी में वस्तु लौटा देने पर शराबी व्यक्ति द्वारा सार्वजनिक स्थानों में उत्पात आदि।

ये हैं प्रमुख प्रावधान

जीरो नंबरी एफआईआर: अपराध के लिए देश में कहीं भी एफआईआर दर्ज हो सकेगी। वह एफआईआर संबंधित थाने में स्वतः ट्रांसफर हो जाएगी और वहां उस एफआईआर को नंबर मिल जाएगा।
मौखिक भी दे सकते हैं सूचना: संज्ञेय अपराध में थाने में मौखिक रूप से या इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से दी गई सूचना के आधार पर एफआईआर दर्ज हो सकेगी।

ई-एफआईआर: वॉट्सऐप- टेलीग्राम सहित किसी भी इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से एफआईआर दर्ज हो सकेगी, जिसको लेकर ऑनलाइन दर्ज कराने के बाद तीन दिन के भीतर प्रार्थी को संबंधित थाने में उपस्थित होकर हस्ताक्षर करने होंगे।
एसपी कार्यालय में भी एफआईआर : थाने में एफआईआर दर्ज नहीं होने पर पहले की तरह ही पुलिस अधीक्षक कार्यालय में एफआईआर दी जा सकेगी।

कोर्ट के जरिए एफआईआर: पुलिस के एफआईआर दर्ज नहीं करने कोर्ट के माध्यम से एफआईआर का प्रावधान पहले की तरह ही रखा गया है।
एफआईआर से पहले पीई: 3 से 7 साल तक की सजा वाले अपराधों में पुलिस डीवाईएसपी की मंजूरी के बाद उसे जांच के लिए भी रख सकती है, लेकिन पुलिस के स्तर एफआईआर के बारे में 14 दिन में निर्णय करना होगा।

बच्चों से अपराध कराने वाले शातिर नहीं बच सकेंगे

मिलेगी कॉपी : पीड़ित को एफआईआर की कॉपी थाने से निःशुल्क मिलेगी।

90 दिन में सूचना : पीड़ित को जांच के 90 दिनों के भीतरे उस पर प्रगति के बारे में पुलिस सूचना पहुंचाएगी।
नहीं बच सकेंगे अपराधी : बच्चों के अपराध करने पर तीन साल तक की ही सजा का प्रावधान होने से अपराधी बड़ी वारदातों में बच्चों का इस्तेमाल करने लगे थे, अब बच्चों से अपराध कराने वालों को सीधे तौर पर उस मामले में अपराधी की तरह मानते हुए एफआईआर दर्ज होगी।
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