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जयपुर

मोबाइल की लत… 2 से 5 वर्ष के बच्चे वर्चुअल ऑटिज्म के शिकार

छोटा बच्चा लगातार रोता है और उससे परिवारजन के काम में व्यवधान होता है तो बच्चे को मोबाइल या अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरण थमा दिए जाते हैं। इससे बच्चा शांत बैठकर घंटों स्क्रीन के सामने बिताने लगता है। लेकिन इतनी कम उम्र में बच्चों को फोन थमाने से उनके मानसिक विकास पर भी विपरीत प्रभाव पड़ रहा है।

जयपुरMar 16, 2023 / 02:15 pm

Santosh Trivedi

पत्रिका न्यूज़ नेटवर्क/जयपुर . छोटा बच्चा लगातार रोता है और उससे परिवारजन के काम में व्यवधान होता है तो बच्चे को मोबाइल या अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरण थमा दिए जाते हैं। इससे बच्चा शांत बैठकर घंटों स्क्रीन के सामने बिताने लगता है। लेकिन इतनी कम उम्र में बच्चों को फोन थमाने से उनके मानसिक विकास पर भी विपरीत प्रभाव पड़ रहा है।

 

कोरोना से शुरू हुई मोबाइल स्क्रीन की लत बच्चों के मानसिक विकास पर असर डाल रही है। राजधानी के जेके लोन अस्पताल के विशेषज्ञों के पास हर दूसरे या तीसरे दिन वर्चुअल ऑटिज्म (स्वलीनता ) की परेशानी लेकर परिजन के संग 2 से 5 वर्ष तक के बच्चे पहुंच रहे हैं। माता पिता अक्सर कम उम्र में बच्चों में ऑटिज्म के लक्षणों को नजरअंदाज कर देते हैं। कम उम्र में ही इसके संकेत दिखते हैं। हाईपर एक्टिव होना इसका शुरुआती लक्षण होता है।

 

यह कहता है शोध
नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इन्फॉर्मेशन (एनसीबीआई) के शोध के अनुसार 29,461 में से 875 यानि 2.97 प्रतिशत बच्चों में वर्चुअल ऑटिज्म के लक्षण पाए जा रहे हैं। शोध के अनुसार कम उम्र में बच्चे जब 2 से 3 घंटे स्क्रीन पर समय देते हैं तो वे फोन के आदी होने लगते हैं। उनमें फोन के अलावा दूसरी चीजों की समझ कम हो जाती है। ऐसे में असामान्य व्यवहार, संज्ञात्मक कमी और भाषा का कम विकास आम समस्या है।

 

न्यूरोनल चैनल पर होता है असर
जेके लोन अस्पताल के शिशु रोग विशेषज्ञ अशोक गुप्ता के अनुसार बच्चे जब कम उम्र में अत्यधिक स्क्रीन टाइम देते हैं तो उनके न्यूरोनल चैनल का विकास नहीं होता हैं। बच्चे कोई भी गतिविधि खुद से करते हैं तो शरीर के एकाधिक न्यूरॉन चैनल काम आते हैं। इससे उनकी देखने, सुनने और बोलने की शक्ति बढ़ जाती है। वहीं छोटे बच्चे जब केवल दिन भर फोन देखते हैं तो न्यूरोनल चैनल विभिन दिशाओं में काम नहीं कर पाते हैं। बच्चे की गतिविधियां सीमित हो जाती हैं।

 

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बच्चे हो जाते हैं चिड़चिड़े
क्लीनिकल जेनेटिक्स विशेषज्ञ डॉ. प्रियांशु माथुर के अनुसार 2 से 5 वर्ष की आयु दिमाग के विकसित होने की होती है। इस उम्र में बाहरी और परिवार के लोगों से बातचीत, शारीरिक गतिविधियां, माइंड गेम बच्चों के दिमाग को तेज करते हैं। बच्चे जितनी ज्यादा गतिविधियां करेंगे उतने ही शार्प बनेंगे। फोन के आदी बच्चे थोड़ी देर फोन न मिलने पर चड़चिड़े हो जाते हैं, चिल्लाने और रोने लगते हैं। अत्यधिक स्क्रीन का इस्तेमाल दिमाग को सुन्न भी कर देता है।

 

 

4,000 की जगह केवल 7 शब्द ही बोल पा रहे हैं
विद्याधरनगर निवासी पूजा शर्मा ने बताया कि उनका बेटा चार साल का है। कोरोना के दौरान लम्बे समय तक फोन इस्तेमाल करता था। धीरे-धीरे वह हाईपर एक्टिव होने लग गया। वह शब्द सही से नहीं बोल पाता है। चिकित्सकों के अनुसार इस उम्र में बच्चों में 4 हजार शब्द बोलने की क्षमता होती है, लेकिन वह केवल 7 शब्द ही बोल पाते हैं। रंगों को पहचानने में भी काफी दिक्कत होती है और परिवारजन को नाम से नहीं पहचान पाते हैं।
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ऐसी परेशानी…होने लगते असामान्य
1.बच्चे फोन में वीडियो देखते हैं, गेम खेलते हैं और अपने आस-पास के वातावरण से दूर हो जाते हैं।
2.बच्चों का व्यवहार धीरे-धीरे असामान्य होने लगता है। उम्र के अनुसार उनकी गतिविधियां कम होती हैं, न तो वे नजर मिलाकर बात करते हैं और न ही सही से शब्दों का उच्चारण कर पाते हैं। एक ही गतिविधि बार-बार दोहराते है।
ऐसे लक्षण दिखें तो हो जाएं सावधान
– हर थोड़ी देर में फोन मांगना।
– माता-पिता व किसी से भी नजर न मिलाना।
– नाम पुकारने पर अनसुना करना।
– पूरे दिन वीडियो में आने वाले शब्दों को गुनगुनाना।
– बोलने में देरी।
– एक ही गतिविधि को दोहराना।
– परिवारजन को न पहचानना।
– रंग व आकार पहचानने में दिक्कत

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